दुनिया के सबसे सुसंस्कृत देश में स्त्री के पास अपना कोई पता नहीं है
duniya ke sabse susanskrit desh mein istri ke pas apna koi pata nahin hai
ये स्त्रीविरोधी सभ्यता है
स्त्रीशत्रु संस्कृति!
दुनिया में इस सबसे सुसंस्कृत देश में
जिन स्त्रियों के पास अपना पता है, नगण्य हैं
बेपता स्त्रियों की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला यह देश
स्त्रियों पर अपराध के समय को छोड़कर सबसे अधिक गर्व करता है।
सभी हिंदूवादियों, इस्लामवादियों, बौद्धों, सिखों, ईसाइयों,
अंबेडकरवादियों, गांधीवादियों, मार्क्सवादी कुलों,
ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों और अछूतों में से
किसी की स्त्री के पास अपना पता शायद ही हो,
उनके पास या तो पिता का पता है, या पति का या बेटे का!
रवींद्रनाथ ठाकुर की पत्नी के पास अपना कोई पता न था
न था प्रेमचंद की पत्नी के पास अपना पता
न नेहरू की पत्नी, न गोडसे की, न सावरकर की और न अंबेडकर की
इस देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और
यहाँ तक कि महिला आयोगों की अध्यक्षों तक का अपना कोई पता-ठिकाना नहीं है।
इस देश के मरुस्थलों के भीतर बहती जलधाराओं के रूप में लुप्त नदियों का कहना है
जिस दिन स्त्री के पास अपना पता होगा,
वह समग्र नागरिक और सम्यक् व्यक्तित्व होगी
मरुस्थल में लुओं का ताप सहती खेजड़ियों का कहना है
सबसे पहले पुरुषों को सब कुछ स्त्रियों के नाम करना होगा अपना सब कुछ
बेटियों को बेटों की तरह देने होंगी ज़मीनें-बैंक बैलेंस और महानगरों में ख़ाली छोड़ दिए गए प्लॉट
और किराए पर दिए गए भवन।
स्त्रियाँ कभी-कभी आँगन होने का एहसास पाती है,
वरना तो वे सड़कों की तरह हैं, विस्थापन की पीड़ा सहती, ढहती, रौंदी जाती और उठ खड़ी होतीं!
- रचनाकार : त्रिभुवन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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