दुमका
dumka
एक खड़िया दोस्त का ख़त
एक
इससे पहले
महज़ उपराजधानी था मेरे लिए
अब मेरी रातों में
जागता है दुमका
अपने छोटे-छोटे धड़कते
सपनों के साथ
दो
नदियाँ जो चारों तरफ़ से
दुमका को घेरे हुए हैं
नदियाँ जो वीरान हो गईं
लूट लिया गया
जिनके बालू और पानी को
दुमका की कहानी कहती हैं
तीन
दुमका नहीं आता
तब देख ही नहीं पाता
कि दुनिया में इतने संताल भी बसते हैं
झारखंड के एक बड़े नेता के
आलीशान आवास के ठीक बाहर
अब भी एक वृद्ध संताल दंपति बेचता है हड़िया
चार
दुमका नहीं आता
तब पता ही नहीं चलता
कि बोलने में थोड़ा सुर मिलाने से
गीत बनता है
चलते हुए थोड़ा हिलने से
नृत्य बनता है
पाँच
दुमका नहीं आता
तब पता नहीं चलता
कि भूखे-प्यासे दुमका के हाथ
भात खिलाते हैं बंगाल को
बांग्ला कविताओं में हरियाली की वजह
कुछ यह भी है
छह
दुमका का पानी
दुमका के बाँध में रुकता है
पर जाता है बंगाल
बंगाल के खेत सींचता
रोता रहता है
दुमका
सात
बांग्ला साहित्य में
बारंबार आए दुमका के बंगाली,
दुमका में कम
‘सोनार बांग्ला’ में ज़्यादा जीते हैं
दुमका आज भी उनके लिए कॉलोनी सरीखा है
और वे यहाँ के बाबू साहब
आठ
दिकू होता जा रहा
बहुत भ्रमित है दुमका
मारवाड़ियों, बंगालियों, बनियों के बीच
अपनी पहचान को पाने के लिए
तड़प रहा है
दुमका
नौ
बाहर की छोड़िए
उपराजधानी होते हुए
राँची में अल्पसंख्यक है
दुमका
दुमका कहने से राजधानी में आप
झारखंडी होने का बोध नहीं पा सकते
दस
बहरहाल, फ़ोन करता हूँ दुमका
पूछता हूँ—कुएँ में पानी का स्तर
क्या अब भी उतना ही है ऊपर?
जवाब पाकर होता हूँ आश्वस्त
कि अब भी बचा हुआ है
दुमका!
- रचनाकार : राही डूमरचीर
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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