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दुखांत

dukhant

मलयज

मलयज

दुखांत

मलयज

और अधिकमलयज

    जीवन की दुपहरी में

    छायाहीन सड़क पर चलते चलते

    एकाएक एक अनुभूति हुई

    याद नहीं मौसम गर्मी का था या सरदी का या वर्षा का

    पर सड़क मुझे वहीं का वहीं छोड़

    आगे मोड़ पर लेती मोड़

    पेड़ों के झुरमुटों में खो गई—

    जहाँ फूल थे, मेंहदी के झाड़ और ख़ुशनुमा बसंती मौसम।

    तभी आसमान झुक कर देखने लगा

    बल्कि जलते सूरज को उसने ओट कर

    बादलों से बारिश की

    उठी सोंधी गंध और पल भर में बरसात थी;

    बरबस ही फुटहे मकानों में बसे

    मरियल परिवार हाथ बाँधे

    गर्दन झुकाए, कंधे तुड़ाए खड़े थे।

    मैं क्या करता?—

    सड़क उस दृश्य तक जाकर ख़त्म हो गई थी

    और वह अनुभूति एक पहचानी-सी हाय में

    बदल गई थी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ज़ख़्म पर धूल (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : मलयज
    • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
    • संस्करण : 1971

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