वह दु:ख की गहनतम अवस्था में भी
प्रकाश की उपस्थिति पर बात करती है...
सुखद स्मृतियों का शटर ऑन कर लेती है...
सांत्वना को ढूँढ़ रहे
लटके चेहरों से संवाद के लिए जुटा लेती है कुछ दैनिक शब्द।
वह समय की डगमगाती नौका पर बैठी
तन्मयता से चला रही है पतवारें;
सुख को सहेजते हुए
वह दु:ख पर बात करती है।
पर नदियाँ अभी भूली नहीं हैं
उसकी आँखों का पता
और वसंत अभी भी उसके घर में उग आता है।
- रचनाकार : ऋतु त्यागी
- प्रकाशन : हिंदवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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