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डोलती नाव

Dolti naw

ममता बारहठ

ममता बारहठ

डोलती नाव

ममता बारहठ

और अधिकममता बारहठ

    अँधेरे समंदर पर डोलती नाव

    करती है सवाल

    आज हम कितना दूर निकल आए हैं

    और कितना बाक़ी है सफ़र अभी?

    लहराते पानी से आता है जवाब

    जितना बचा रह गया है तुममें सवाल ये

    बस उतना भर बाक़ी रह गया है सफ़र अभी

    नाव डोलती रही

    लहर बहती रही

    नाव ने फिर कहा :

    ये इतना उजाला कहाँ से रहा है

    कहीं उसका देश क़रीब तो नहीं?

    लहर ने कहा :

    इस रौशनी के झीनेपन जितना ही क़रीब है वो देश भी

    जब पार कर लोगी उजाले को

    देश ख़ुद-ब-ख़ुद बनने लगेगा तुम्हारे भीतर

    नाव डोलती रही

    लहर बहती रही

    रात के बीच

    आसमानी द्वीप पर एक-एक कर बत्तियाँ जलने लगीं

    बस्ती जगमगाने लगी

    नाव हाथ बढाकर किनारा छूने लगी

    आसमान की ओर देखकर बोली :

    हम इस बस्ती में क्यों रुक जाए कुछ देर

    लहर ने कहा :

    इस तरह गुज़रना इस बार कि लगे रुकी हो

    या इस तरह रुकना कि लगे गुज़र गई

    लहर चुप-सी बहती रही

    नाव रुकी हुई-सी गुज़रती रही

    अँधेरे समंदर का रहस्य गूँजता रहा...

    रात भर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता बारहठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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