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स्वागत तेरा

swagat tera

अनुवाद : विजय वर्मा

प्रकाश प्रेमी

प्रकाश प्रेमी

स्वागत तेरा

प्रकाश प्रेमी

और अधिकप्रकाश प्रेमी

    बिन आहट के पाँव से गोरी

    मैं आकाश से देख रहा हूँ

    ढलती है धीरे-धीरे

    छन-छन करती लपक रही है

    हाथ लिए बासंती माला

    मेरे गले डालते हेतु

    उसके क़दम क़दम के ऊपर

    साँसों में मेरे आती तेज़ी

    मेरे दिल की बढ़ती धड़कन।

    मेरा-तेरा मिलन प्रेयसि,

    नहीं यह कोई पहला-पहला

    पहले भी तो कितनी बार

    गले में मेरे बाँहें डालीं

    अपनी चादर में लेकर

    स्वागत किया शांत हृदय से।

    तू आगत, फिर स्वागत तेरा

    इस जीवन में आने से पहले

    जैसे छोड़ गई थी मुझको

    हँसते-खेलते

    पाओगी आज भी उसी रूप में

    क्योंकि जैसे तुझसे

    लोग हैं डरते

    घटना अनहोनी समझकर

    मैंने उस रूप में कभी भी

    किसी भी आवरण में तुझको

    कभी नहीं बेगाना समझा।

    तेरे आने की ख़ुशियों में

    मैंने कोई हार पिरोए

    ही तनी हैं भौंहें मेरी

    आगत का स्वागत हे देवि,

    मन से ही सदा करता हूँ

    मुझे कुछ देना तुझको

    तुमने भी तो कुछ लेना

    अहंकारी इस शब्द में जो है

    छोटी-सी एक 'ई' की मात्रा

    वही तो है लेना तुमको।

    जो कुछ जितनी मेरी कमाई

    पूँजी या कोई रास पुरानी

    सभी बाँट चुका हूँ—

    ब्रह्म राक्षसों में घिरकर

    इनकी इस विकराल देह के

    कब तक हैं अब दर्शन करने।

    दूर कहीं चल, यहाँ है तेरी

    मर्ज़ी का संसार सुहाना।

    ज्योतिपुंज कोई अजब निहारें

    घनी शांत शतदल कमलों की

    छाँव सुहानी एक मुट्ठीभर

    गले लगाएँ चाव-चाव से

    बड़ी धूप अग तक खा बैठे

    कोमल पाँव हुए घायल हैं

    अंगारों-सी गर्मी सहकर

    तानों-चुभनों

    नाकामियों के

    गीत हैं फिर से कितने गाने

    सब गीतों के स्वर हैं पुराने

    साज़ अटपटे

    सुदृढ़ जाल

    अब काट देने की इच्छा है

    जाओ तुम निस्संकोच,

    माला को वरमाला समझे

    हम पहनने को तत्पर बैठे

    तेरी नर्म-नर्म गोदी में

    बड़ी शांति करूँगा अनुभव

    मोहमाया के आवरणों में

    तेरे आते ही प्रेयसी

    पल क्षण में ही पड़ेंगे ढीले

    तेरा-मेरा साथ अमर है

    प्रिय हम एकात्म हो

    पल भर की थी एक जुदाई

    अब मिलन की ऋतु आई है

    एक-दूसरे को हों समर्पित।

    बिन आहट के पाँव से गोरी

    तुझे उतरते देख रहा हूँ

    तेरा स्वागत करने हेतु

    करूँ प्रतीक्षा हँसते-हँसते।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 127)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : प्रकाश प्रेमी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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