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बसंत

basant

सरसों भी पीली और पीला बसंत

पीली हैं नायिकाएँ पीले ही कैंत*

पीली जाति पीले दिलेर

लंबे रास्ते; दुर्गम हैं फेर

खड्ग की पीली धार है आज

कला का पीला आकार है आज

पीली भाख और पीले ही गीत

मैरम* भी पीले और पीले ही मीत

पीला मज़दूर-किसान है आज

पीला ही क़ौम का मान है आज

खेत भी पीला सहमा सा आज

पीला ही हल और पीला सियाड़*

पीले बैल हैं पंजाली* भी पीली

प्रतीक्षा की झुकी हुई टाली भी पीली

पीला सम्मान और यह कैसा तूफ़ान

पीली जवानी के रोते हैं प्राण

बग़ीचे के फूलों के पीले हैं भाव

पीली हैं मंडियाँ पीले व्यापार

देस को हुआ जैसे जरकान*

पीली है धरती और पीला आसमान

आया नहीं अभी आएगा बसंत

होगा ही होगा फिर दुःखों का अंत

आएगा नहीं ख़ुद हमें ही है लाना

चाँद सँभालेगा सारा उजाला

उठो भी जागो तो बेपरवाह

देस की बिगड़ी ख़ुद ही बनाओ

एकता की रस्सी को बटो बनाओ

विपदा के हाथी को बाँधो-टिकाओ

दुश्मन को जानो और साथी पहचानो

रूठे हुए माथे को फिर ला ठानो

चोरों को अंदर बसाना मत आप

धोखा फिर से; खाना मत आप

ग़रीबी का पतझड़ भगाना है पहले

धरती का भाग्य जगाना है पहले

शोषितों की एकता है : ठंडी हवाएँ

प्रतीक्षा के फूलों को वे ही खिलाएँ

फिर जिए मेहनत, हँसे और गाए

आशा की कलियों का यौवन जगाए

सभी वृक्षों का होगा सिंगार

बल्लरी भी पहन लेगी फूलों का हार

कला की मीठी सुगंध फिर आएगी

टहनी आकाश की भी झुक-झुक जाएगी

एक दिन बसंत; हर जगह खिलेगा

उल्लास का सिंधु फिर कहाँ थमेगा।

*कैंत : पति/नायक

*सियाड़ : हराई

*मैरम : राज़दार

*पंजाली : जुआ

*जरकान : पीलिया

स्रोत :
  • रचनाकार : केहरि सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अनुवादक द्वारा चयनित

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