कल-कल करते
छलक छलककर
मन ही मन हँसें नाचें
उछल-उछलकर
मचल-मचलकर
चाँदी जैसे चंचल झरने
ऊँचे पर्वत और पहाड़ों के ऊपर से,
जंगल वन से
झाँक-झाँककर
करते हैं परिहास ठिठोली
चमक-दमक की चंदावाली
शुभ्र रश्मि से
सा-सा, रे-रे, गा-गा, मा-मा
सात स्वरों की सरगम गाते,
लोट-पोट हो फिसल-फिसलकर,
चट्टानों के खंड-खंड में
दुर्बल दीवारों के मध्य से
हरी-भरी झालर लहराएँ
छेड़-छाड़कर
खेल-खेलकर
रेल-पेलकर
पत्थर-कंकर ठोकर खाएँ
दूध की मटकी ज्यों बिखराएँ
बिल्लौरी खड्डों के भीतर गिरते-पड़ते
बार-बार उठ जाते चलते भाग-भागकर,
वाह रे झरने, नटखट झरने, चंचल बचपन
अंतहीन अनजाने पथ पर
अंधाधुंध-सा दौड़ लगाता
बोलो क्या यह गीत नहीं है?
जीवन का संगीत नहीं है?
यह देखो
ये कोमल कलियाँ
रंग-बिरंगे उत्तरीय में
कोमल और मृदुल उल्फ़तें
प्रेम इश्क़ की
अनजानी-अनदेखी राहें
खिल-खिल हँसें रूप सँवारें
किंतु, कब तक यह चंचलता
आख़िर भँवरे आ जाएँगे
पागल भँवरे
रस के लोभी
तीखी चितवन
लोभी आँखें
भिन-भिन करते
गीत सुनाते
प्रीत जताते
कुटिल प्रीत से रस ले जाते
औ' पछतावा देकर जाते
गोद भर गई अश्रुजल से
बाट जोहना और कुम्हलाना
आस उम्मीदों का मिट जाना
बोलो क्या यह गीत नहीं है?
जीवन का संगीत नहीं है?
यह देखो
भरपूर सरोवर
बँधा-बँधा-सा
घिरा-घरा-सा
रुकी रुकी है जीवन-धारा
छाती में तो कमल जड़ें हैं
भरी-भरी-सी
धीरज धरती
किस छलिए की बाट जोहती?
यह किसकी मजबूर जवानी?
रूप सुहाना, सुंदर सीरत
सहमी-सहमी
मन मुर्झाया
चंचल झोंके तार हृदय की छेड़ें जाते
आहों की लहराएँ लहरें
घायल मन से उमड़-उमड़कर
खोजें कोई निकट किनारा
तार-तार सा अंबर लगता
फिर भी धीरज धरा हुआ है
बोलो क्या यह गीत नहीं है?
जीवन का संगीत नहीं है?
यह गहरा सागर
नीलम जैसे बिछा हुआ हो
बदन में इसके असंख्य तरंगें
भावनाओं का जाल बिछा है
उत्सुक मन में कई उमंगें
चंदा की सूरत का आशिक़
युगों-युगों से इश्क़ पुराना
मन उच्छृंखल, हाथ फैलाता
अति दूर है पर पहुँच से
चाँद हाथ नहीं आता इसके
जलता
कुढ़ता
धधकते दिल से, निकले धुआँ
बादल बन आकाश में उड़ता
प्रीत बेचारी
बिजली प्यारी
मेघों के पीछे
आसमान में चक्कर काटे
चहुँ ओर यह घेरा डाले
किंतु, रूप है पार क्षितिज के
खिल-खिल हँसे दूर-दूर से
भाग के जाना
लुक-छिप जाना
लुटी-पुटी-सी काली बदली पगली-जैसी
पर्वत-पर्वत, जंगल-जंगल, रोती छम-छम
उज्ज्वल मोती,
टप-टप गिरते
झरते जाते
भार हृदय का हल्का होता
ये झरने ये कलियाँ कोमल
ये नदियाँ ये मान सरोवर
सब सागर की करामात यह
सब सागर के प्यारे धंधे
यह सब कुछ क्या गीत नहीं है?
एक रीत की ये सब कड़ियाँ
बोलो फिर यह सारी सृष्टि
जीवन का संगीत नहीं है?
- पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 113)
- संपादक : ओम गोस्वामी
- रचनाकार : तारा स्मैलपुरी
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2006
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