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दीवार

diwar

नीलाभ अश्क

और अधिकनीलाभ अश्क

    सामने के उन पहाड़ों पर जो आग तीन रातों से

    जलती रही थी, पहाड़ की दूसरी तरफ़ चली गई।

    ‘क्या तुम उस आग को वापस ला सकते थे?'

    दिन उस जगह पहुँच गया था जहाँ से कोई रात

    नहीं शुरू होती। पहाड़ पर एक काला धब्बा

    रह गया था, जहाँ जाकर, तुम्हें मालूम था,

    तुम लौट नहीं सकते।

    दूर कहीं परछाइयाँ गिरती चली गई थीं। या

    फिर तुम्हारे ज़ख़्मों से टपकते ख़ून की एक धार।

    सड़क पर चलते हर आदमी का चेहरा तुम्हें

    अपरिचित और डरावना लगने लगा था। तुमने

    उनसे बातें करने की कोशिश की थी। लेकिन वे

    तुम्हें उसी तरह छोड़ कर आगे बढ़ गए थे।

    अंदर कहीं एक दीवार उठती चली गई थी।

    और तुमने उस अंतर को याद करने की कोशिश

    की थी, जिसे तुम भूल नहीं सके थे।

    तुमने बार-बार होटलों, हौलियों या सस्ते

    कहवाघरों में जाकर अपने दोस्तों को ढूँढ़ना

    चाहा था।

    लेकिन तुम्हें सभी चेहरे अपरिचित लगे थे या

    फिर सपाट। व्यर्थ और बेकार होते लोगों

    से बाज़ार, सिनेमाघर, वेश्यालय और बार

    भर गए थे। तुमने उन्हें रोक कर समझाना

    चाहा था।

    ‘उन्होंने पेड़ जला दिए हैं। वे दीवारें

    खड़ी कर रहे हैं। वे हमें यहाँ हमेशा

    के लिए बंद कर देंगे। उनके हाथों में

    बंदूक़ें हैं या फिर ज़हर उगलती तेज़ाब

    की बोतलें।'

    लेकिन किसी ने तुम्हें नहीं सुना था। वे तुम्हें

    उसी तरह छोड़ कर आगे बढ़ गए थे। और

    तुम्हें लगा था कि तुम्हीं एक अनजान भाषा

    बोल रहे हो।

    तुमने उस अंतर को याद करने की कोशिश

    की थी, जहाँ से कोई निकटता शुरू नहीं

    होती...

    व्यर्थ और बेकार होते लोगों से बाज़ार,

    सिनेमा, वेश्यालय और बार भर गए थे...

    तुमने उन्हें बताने की कोशिश की थी।...

    लेकिन वे तुम्हें अनसुना कर आगे बढ़ गए

    थे। तुम उन्हें रोक नहीं सके थे।...

    तुम्हें लगा था कि वह अंदर की दीवार

    कहीं ढहने लगी है। या फिर सामने के पहाड़

    पर वह काला धब्बा धीरे-धीरे फैल रहा है।

    तुम आख़िरी कहवाघर के बाहर कर टहलने और गुनगुनाने

    लगे थे। सिविल लाइंज़ में वेश्याओं या लिपी-पुती बाज़ारू

    औरतों ने तुम्हें आकर्षित करने की कोशिश की थी।

    और तुम सारी शाम सड़कों पर टहलते और

    गुनगुनाते रहे थे। उदास।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल जमा-1 (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : नीलाभ
    • प्रकाशन : शब्द प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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