दीवार खड़ी करने से बहुत-सी चीज़ें बाहर रह जाती हैं
diwar khaDi karne se bahut si chizen bahar rah jati hain
वासुशशी
Vasushashi
दीवार खड़ी करने से बहुत-सी चीज़ें बाहर रह जाती हैं
diwar khaDi karne se bahut si chizen bahar rah jati hain
Vasushashi
वासुशशी
और अधिकवासुशशी
दीवार खड़ी करने से बहुत-सी चीज़ें बाहर रह जाती हैं
यद्यपि यह ठीक है कि
दीवार अच्छी भी बन सकती है / उस पर लताएँ चढ़ सकती हैं
यद्यपि यह ठीक है कि
दीवार के अंदर का सबकुछ अपना होता है
सुरक्षित रहता है
दीवार शायद अत्यावश्यक है
जैसे कि देवता है वह
लेकिन दीवार सिर्फ़ दीवार है
वह आकाश नहीं छू सकती
और, अंदर आने वाले तो उसे उलाँघते भी हैं
और, दीवार ढह भी सकती है।
पर आजकल शहर की सड़कें बच्चों के लिए नहीं होतीं
और आजकल आदमी को, आदमी से ही अपने को अलग करना पड़ता है
दीवार के संबंध में जितना भी खेद प्रकट करूँ...
मैं खड़ा करता हूँ उसे
(दीवार शायद सबसे अप्रिय आवश्यकता है)
शायद इस जमाने में हम दीवार की ज़रूरत मिटाने के लिए
दीवार खड़ी करते हैं
हम दीवार के विरुद्ध दीवार खड़ी करते हैं
(लेकिन) खड़ी करते हैं, खड़ी करते हैं
यद्यपि दीवार खड़ी करने के बाद बहुत कम अंदर रह पाता है
(लेकिन सब चीज़, सबसे ज़्यादा आवश्यक युग भी अंदर नहीं रह पाता)
दीवार, पुरुष-जैसी दीवार,
सिर पटकने के लिए भी ठीक दीवार।
- पुस्तक : नेपाली कविताएँ (पृष्ठ 47)
- संपादक : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
- रचनाकार : वासुशशी
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1982
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