ऐसी बददिली के दिनों में,
जब कुछ काम न करने को जी चाहे,
उदासी भरी दोपहरें बच्चों-सी सिसकती हों,
खिड़कियाँ फड़फड़ाती हों लू के थपेड़ों से,
दिल की उमस शहर में मुँह बाए फिरे,
जब आँख उबलती हो देखने के लिए,
एक ऐसे दिन में,
तुझे याद करने के सिवा भी और काम किए मैंने,
नहाने के बाद क़रीने से बाल सँवारे,
कपड़े तह करके रखे,
कमरा साफ़ किया,
गर्द झाड़ी उन किताबों से जिन पर
तुम्हारी छुअन के दस्तख़त थे,
पर्दे सँभाले,
जाले और धूल सँभाली,
एक बददिली के दिन में,
क्या कर सकता था मैं ये?
तुम्हें याद करने के साथ सब किया मैंने!
मेरे हाथों में तुम थीं,
कपड़े इस्त्री करके तह करती हुई,
पोंछा लगाती हुई,
मेज़ की धूल साफ़ करते हुए,
सब कुछ किया मैंने सलीक़े से,
ये बदसूरत हाथ आज की शाम ख़ूबसूरत थे,
तकिए के ग़िलाफ़ बदले तो तुम थीं,
चादर बदली तो भी तुम थीं,
हर इक शय में बस गई हो मेरे हाथों से निकलकर!
मैंने तुम्हें याद करने के सिवा बहुत काम किया!
- रचनाकार : ज़ुबैर सैफ़ी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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