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दिल्ली की बसंतसेनाएँ

dilli ki basantsenayen

संजय चतुर्वेदी

संजय चतुर्वेदी

दिल्ली की बसंतसेनाएँ

संजय चतुर्वेदी

और अधिकसंजय चतुर्वेदी

    सहमत लोगों में मुन्सी जी अजब खेल है नूरे का

    सोभित कर नवनीत लिए सो निकसत राग हजूरे का

    मीरा सूर नजीर कबीरा सारे ढक्कन होत भए

    अब तौ भैया कलचर पै भी है हमला लंगूरे का

    दरसन था सैलिंदर का तहरीर उतारी संकर ने

    कलापारखी बाँचै उसको गाना राजकपूरे का

    आदम सेना सिवसेना पै चढ़ जा बेटा फ़रमाईं

    दिल्ली की बसंतसेनाएँ रस पी के अंगूरे का

    मरी बिचारी जनता उल्लू सीधा भया मसीहा का

    संसद जाय मदारी बैठा सत्यानास जमूरे का

    चढ़ी चासनी कल्चर की तौ लगे हाथ परमारथ भी

    निरंकार है प्रगतिसीलता अगमपंथ कोई सूरे का

    हाथ लँगोटी आई सारे भूत भाग के निकस गए

    महिमा मिली क्रांति का सपना हो गया धूरमधूरे का।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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