दिल्ली के जाने का समय
dilli ke jane ka samay
बचपन की मुस्कुराहटों पर
रखे जा रहे हैं पत्थर
गिरवी रखे जा रहे हैं जवानी के सपने
बुढ़ापे की उम्मीदों को धोखा दिया जा रहा है
दिन-रात।
तकनीकी नाकेबंदी की जकड़ में है गंगा
यमुना के गले में उग रही हैं कंकड़ों की फ़सल
समुद्र को अलविदा कहने पर
मजबूर की जा रही है नर्मदा।
गोमुख का भूगोल टेढ़ा हो रहा है
टेढ़ा हो रहा है हरि की पौड़ी का भूगोल
हरिद्वार का भूगोल टेढ़ा हो रहा है।
मेरठ के जाने का समय है यह
समय है कानपुर, प्रयाग, पटना और कलकत्ता के जाने का।
दिल्ली के जाने का समय है यह।
सरस्वती-पथ का सरण करने वाली है गंगा।
- पुस्तक : उन हाथों से परिचित हूँ मैं (पृष्ठ 18)
- रचनाकार : शलभ श्रीराम सिंह
- प्रकाशन : रामकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 1993
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