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धुएँ के अंबार में से

dhuen ke ambar mein se

प्रभजोत कौर

प्रभजोत कौर

धुएँ के अंबार में से

प्रभजोत कौर

और अधिकप्रभजोत कौर

    अभी तुम्हारा प्यार कहो कैसे अपनाऊँ

    आत्म-पीड़ा तो पहचानूँ

    दूरी कैसे मिटाऊँ!

    आज प्यार परिपक्व नहीं है

    लहू मिट्टी के संबंधों से

    तनिक उभरते

    अभी मानव ग़ुलाम समय का

    तन का, मन का

    रस-रत्नों का।

    अभी नयन चाहें नयनों को

    स्पर्श की उष्मा माँगें

    अंग काँपते।

    अभी नहीं साहस घटा है

    अभी जी रहा है अस्तित्व

    प्रतिदिन मौत सहन कर रहा।

    अभी घनी है बादल की परछाई

    अभी सूरज-चाँद सके

    धरा-गगन के सामने।

    अभी अँधेरे काले हैं

    अभी तो यौवन के पाँवों में ताले हैं

    अभी ज़िंदगी खिली नहीं

    यह रास रचाए

    अभी मिलन सहमा-ठिठका-सा

    भ्रम के फैले साए

    अभी प्रीत पाँवों में बंधन

    नयनों पर पहरे हैं।

    समय अभी निर्भय नहीं है

    काँप-काँप रुक जाए।

    अभी गीत की लय जागी

    बोल-विहीन तराना

    पाँवों की गति में धड़के हैं

    कैसे मंज़िल पा लें।

    अभी तो संस्कारों के बंधन

    लोकलाज की लोई अभी

    भावी का सिर ऊपर है

    सहन सभी करते हैं।

    अभी गगन कुछ तंग लग रहे

    धरती भी छोटी है

    स्वप्न अभी मीठे लगते

    सच्चाई कड़वी है।

    प्रीत अभी दुविधा में डूबी

    खोजे सदा सहारा

    अंधकार ने रास रचाई

    प्रकाश रहा इक छोर खड़ा-सा।

    विवश हो रही मन की माटी

    होठों तक लहराए

    भावों के हैं भँवर अनूठे

    रूहों तक हैं छाए

    अभी नहीं पूर्ण यह भटकन

    समय अभी आया

    अभी वियोग की आग सुलगे

    रूप यहाँ छिपाया

    धुएँ के अंबारों में से

    अभी जागी ज्वाला

    पूर्ण प्यास झूम ले कैसे

    आत्मा की मधुशाला।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 98)
    • रचनाकार : प्रभजोत कौर के साथ अनुवादक फूलचंद मानव और योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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