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धूप के समर्थन में

dhoop ke samarthan mein

शिरीष कुमार मौर्य

शिरीष कुमार मौर्य

धूप के समर्थन में

शिरीष कुमार मौर्य

और अधिकशिरीष कुमार मौर्य

    जो पुरखे धरती पर रहे वही हमेशा साथ चलेंगे

    जिन किताबों में हमारे हिस्से की आग रखी उन्होंने

    वही बची रहेंगी जलने से

    कुछ मित्र निर्मल वर्मा को याद करते हैं

    मैं नागार्जुन को याद करता हूँ

    अपना-अपना परिचय क्षेत्र है

    सब पुरखे सबकी याद में नहीं रह सकते,

    इसलिए अलग-अलग रहते हैं

    हमारी याद एक निम्नमध्यवर्गीय घर है

    कुछ लोग वर्तमान और अतीत की संधि पर खड़े हैं

    तय है कि बाद में वे किसके घर रहेंगे

    मैं देखता हूँ कुछ देर तक अपलक

    अपने क़स्बे की सुंदरता

    कठिन अति

    हम मनुष्यों के जीवन की हताशा

    कुछ मलिन कर देती उसे

    यह सुंदरता याद में नहीं मेरी आँख में है

    साँस रहते रहेगी

    मलिनता चली जाएगी याद में फिर याद से बाहर

    यह सोचता मैं हूँ

    दरअसल

    इस तरह लिखना भी मेरा

    एक पुरखे का

    मेरी याद में चले आना है

    एक दिन मुझे भी किसी की याद में जाना है

    कविता की याद में मैं नहीं होऊँगा

    पर होऊँगा कविता और विचार के शत्रुओं की याद में

    उनकी सांस पर बोझ की तरह

    होऊँगा बीते हुए वक़्त की आवाज़ में

    उस सोज़ की तरह

    जिसके होने से किशोरों की आवाज़ बदलती है जब वे जवान होते हैं

    उस बदलने की याद मेरे भीतर है

    उस बदलने के हठ की याद भी मेरे भीतर है

    मैंने उतना भर हठ बचा रखा है

    कि एक दिन मेरी कविता की याद में रख दूँगा उसे

    मैं गुज़र जाऊँगा मेरा हठ बचेगा

    आग से भरी किताबों वाले पुरखों को याद करता

    और उस सुंदरता कठिन अति को

    जिसके होने से रहा जीवन मेरा जब तक भी रहा

    आत्म का सजग रखवाला पीड़ा के प्रत्याख्यान रचता हूँ

    जितना विचार में हूँ उतना भर बचता हूँ

    अँधेरों के साथ बैठे उजालों का विरोधी मैं

    मैं धूप का समर्थक

    स्वयंप्रभ

    समुज्जवल

    विकल हृदय एक!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिरीष कुमार मौर्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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