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धरती से बड़ा है मेरा दुख

dharti se baDa hai mera dukh

बहादुर पटेल

बहादुर पटेल

धरती से बड़ा है मेरा दुख

बहादुर पटेल

और अधिकबहादुर पटेल

    जब से गई हो तुम

    आसमान ने बदल लिया अपना रंग

    दिन भर के इंतज़ार के बाद

    कर ली हैं आँखें बंद

    रात ने खोल ली हैं

    अपनी आँखें

    चाँद भी थककर

    लौट रहा है

    अमावस के घर की ओर

    धरती ने बदल ली है

    रूठकर करवट

    सभी इंतज़ार के रास्ते

    लगता है

    तुम्हारे भीतर से निकलते हैं

    ये रास्ते अधीर होकर

    अपलक देख रहे हैं

    तुम्हारी बेरुख़ी

    अब तो लौट आओ

    अन्न के दाने की तरह पक गया हूँ मैं

    अब के जो बिखरा

    तो समेटा नहीं जाऊँगा

    कीचड़ में पड़े काँटे

    की तरह मत चुभो

    मेरी पगथलियों में

    धरती से बड़ा है मेरा दुख

    आँखों से टूटकर गिरा मोती

    बहा ले जाएगा सब कुछ

    फिसल जाएगी यह पृथ्वी

    अपनी धुरी से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बूँदों के बीच प्यास (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : बहादुर पटेल
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2010

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