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धन्यवाद-ज्ञापन का वक्ता

dhanyavad gyapan ka vakta

संजय शांडिल्य

संजय शांडिल्य

धन्यवाद-ज्ञापन का वक्ता

संजय शांडिल्य

और अधिकसंजय शांडिल्य

    उसे धन्यवाद-ज्ञापन करना है

    काफ़ी सोच-विचारकर

    अब तय किया है उसने

    कि बोलेगा सभा के अंत में

    कि वह धन्यवाद-ज्ञापन करेगा

    हाल-हाल तक

    मंच पर बोलने के नाम से

    उसे धुक-धुकी हो जाती थी

    चेहरा फीका पड़ जाता था

    शरीर सिहरने लगता था

    कई बार तो यहाँ तक सोच लेता था

    कि बोलना किसी दिन उसकी जान लेकर रहेगा

    एक बार

    जब मुख्य वक्ता होने के लिए उसे आमंत्रित किया गया

    तो स्वीकार लिया उसने यह सोचकर

    कि काफ़ी वक़्त है

    धीरे-धीरे विषय-वस्तु को साधकर

    बोलने का अभ्यास वह कर लेगा

    पर हुआ ठीक उल्टा

    समय बीतता गया और बीतता गया वह भी

    बस काम बचा रह गया

    लेकिन ज़ुबान वह दे चुका था सो जाना शुरू किया

    वह जा रहा था और दृश्य पीछे छूट रहे थे

    छूट रहे दृश्यों को

    इस अफ़सोस के साथ वह विदा कर रहा था

    मानो कभी लौट पाएगा

    एक बार तो हद ही हो गई

    जब बोलने का दिन आया

    तो ऐन वक़्त वह बाज़ार निकल गया

    और ख़ुद को भीड़ में खो जाने दिया

    इस बीच कई बार उसका मोबाइल बजा

    पर अनसुना किया हर बार

    उसे ढूँढ़ने के लिए अनेक दूतों को छोड़ा गया

    दूत भी ऐसे चले जैसे ले ही कर लौटेंगे उसे

    पर बेकार, उन्हें देखकर बार-बार वह कहीं छुप जाता

    कई बार की ज़िल्लत के बाद उसने ठाना

    कि कुछ हो जाए बोलेगा ज़रूर

    कि लोग उसके बोलने का इंतज़ार करते हैं

    उसे सुनना चाहते हैं

    आपस की बातचीत में भी

    कई दोस्त कह चुके थे––

    तुम बहुत टॉकेटिव हो

    अच्छा बोलते हो

    मंच पर क्यों नहीं बोलते?––

    इस पर उसका विश्वास ख़ुद पर फिर बन जाता

    बल्कि कहना चाहिए बढ़ जाता

    इस बने-बढ़े हुए विश्वास की वजह से

    वह बार-बार आमंत्रण स्वीकार कर लेता

    स्वीकार करते वक़्त हमेशा उसे लगता

    कि बोलेगा बहुत अच्छा

    और यह भी कि उसके दोस्त यह जानकर ख़ुश होंगे

    कि इतने भव्य आयोजन में वह बोलेगा

    इस कारण भी वह आमंत्रण स्वीकार कर लेता

    लेकिन बार-बार की पराजय के बाद

    उसने रणनीति बदल ली है

    मुख्य वक्ता होने की जगह

    धन्यवाद-ज्ञापन का वक्ता होना वह स्वीकार करने लगा है

    वह जानता है मुख्य वक्तव्य देना कठिन काम है

    विषय के प्रति दूर तक और देर तक बँधा रहना पड़ता है

    इससे आसान है स्वागत-वक्तव्य देना

    इसमें जितना कम चाहें बोल सकते हैं

    मन हो बल्कि ऊँचा हो मनोबल

    तो विषय-प्रवेश भी करा सकते हैं

    नहीं तो हाथ झाड़ ले सकते हैं

    सबसे आसान है धन्यवाद-ज्ञापन करना

    इसमें कोई झंझट नहीं

    आप चाहें तो घंटों बोल सकते हैं

    और बोलते हुए बोलना सीख भी सकते हैं

    ऐसे में मुख्य वक्तव्य देना भी सीखा जा सकता है

    सबसे बड़ी बात यह

    कि गड़बड़ बोलने पर कोई कह भी नहीं सकता

    कि आप गड़बड़ बोल रहे थे

    आप चाहें तो एक ही शब्द में पिंड छुड़ा भी सकते हैं

    यह कहते हुए–'धन्यवाद!'

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय शांडिल्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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