धान के गुच्छे में सूर्योदय
dhan ke guchchhe mein suryoday
मनोरमा बिश्वाल महापात्र
Manorama Biswal Mohapatra
धान के गुच्छे में सूर्योदय
dhan ke guchchhe mein suryoday
Manorama Biswal Mohapatra
मनोरमा बिश्वाल महापात्र
और अधिकमनोरमा बिश्वाल महापात्र
इस समय मेरे चारों ओर
भोर की साँस-साँस
महक रही भरपूर
भींगे-भींगे पवन में
धान के गुच्छे सिर हिला रहे
सुकुमार ललित रागिनी
खुल जाती धनखेत में
नदी के पठार में
ओस की बूँदों में
निजन मन में
दूब भी
भरी है, पुलकित
सूर्योदय के पुलक में
मेघमय पलों को,
चेतना को
संगीत विलास में
भर देता सूर्योदय
धान के गुच्छे में सूर्योदय।
- पुस्तक : कभी जीवन कभी मृत्यु (पृष्ठ 24)
- रचनाकार : मनोरमा बिश्वाल महापात्र
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1994
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