और किसी के नहीं, विकल मन अपने पास रहो
aur kisi ke nahin, wikal man apne pas raho
कृष्ण मुरारी पहारिया
Krishna Murari Pahariya
और किसी के नहीं, विकल मन अपने पास रहो
aur kisi ke nahin, wikal man apne pas raho
Krishna Murari Pahariya
कृष्ण मुरारी पहारिया
और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया
और किसी के नहीं, विकल मन अपने पास रहो
अपनी चोटें, अपनी चिंता, अपने त्रास सहो
सबके अपने अलग राग हैं, अपने-अपने सपने
सब आए हैं अपनी-अपनी राहों मरने-खपने
सहयोगों के नाम छद्म है, अपनत्वों के पट पर
हम सब अलग-अलग घायल हैं अपने-अपने तट पर
अपनी-अपनी क्षमता नापो, अपनी आस गहो
संबंधों की भाषा अनगढ़, अनबूझी, अनबोली
इसीलिए अपने अंतस में अपनी-अपनी होली
अपने हैं उत्ताप और अपने-अपने मरहम हैं
अपने ही संवेग और अपने-अपने संयम हैं
अपने कमरे में बैठो, अपने आकाश बहो
- पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 57)
- रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
- प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.