अंत में
ant mein
एक
घंटियों की तरह बजते हैं फूल
धोखे की तरह बढ़ती है आस
उसके भीतर बसती है धूप
उसके बाहर गिरती है परछाई
वह जब चाहिए, नहीं रहता
हवा रहती है, जब नहीं चाहिए
दो
समय से नहीं कटता मेरा समय
मेरी ही आँख नहीं देख सकती अपनी आँख
दिन क्या नापेंगे पृथ्वी पर मेरे बचे दिन
मैं कई शक्लों, कुछ चेहरों का मेहमान
मैंने सोचने को जगह माँगी
कलाई भर की घड़ी नहीं
मुझे निर्जन टापू पर छोड़ा
कछुए की खोल में जहाँ
घोंघे-सा समय गुज़रता था
इच्छाएँ डाल पर बैठती थीं
वर्जनाएँ पात पर बैठती हैं
तितलियाँ फूल पर बैठेंगी
कोई कैसे बैठ सकता है
नुक्कड़ की दुकान पर?
तीन
(ऐसे नहीं)
ख़ाली हाथ किसी के घर नहीं जाते
खाली हाथ किसी को घर से विदा नहीं करते
फिर भी जब तक जलती है लौ
तब तक रहती है आदमी को उम्मीद
आदमी जब नहीं होगा
उसके हिस्से की लौ
देर तक जलाए रखेगा आदमी
लौ जब बुझ जाएगी
हर आता-जाता आदमी
उसे दिखेगा लौ की तरह
जलता, फिर बुझता।
- रचनाकार : सत्यम तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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