मैं टैगोर के बारे में कुछ विचार रखता था
लेकिन अब नहीं रखता
क्योंकि इससे बंगालियों की भावनाओं को ठेस पहुँचती
ईसाई दुनिया में इतने मज़बूत और खाते-पीते थे
कि बिना ठेस के भी चोट कर सकते थे
इसलिए ईसा के बारे में सोचना बंद कर दिया
मुहम्मद साहब इस्लाम के अलावा
एक ऐतिहासिक व्यक्ति भी थे
लेकिन मुसलमान उन पर इस क़दर
और इस हुनर क़ाबिज़ थे
कि मुहम्मद साहब के बारे में सोचना बंद कर दिया
मैं सोचना चाहता था
लेकिन मैं नहीं सोचता था
मैं सोचता था कि सोचना और जीना एक चीज़ है
लेकिन सोचने से जीवन को ठेस पहुँचने की संभावना थी
मैं वर्ण-व्यवस्था के बारे में सोचना चाहता था
मैं सभी संतों को ब्राह्मण दृष्टाओं को ऋषि
कारीगरों कलावंतों मेहनतकशों को द्विज मानता था
लेकिन ब्राह्मणों के नाम पर ऐसे घटिया लोग जमे हुए थे
जिन्हें इन बातों से ठेस पहुँचती
मैं अंबेडकर के बारे में सोचना चाहता था
लेकिन उनकी मूर्तियों के बारे में भी
और उन ज़मीनों के बारे में भी जिन पर वे क़ाबिज़ थीं
मैं खुशवंत सिंह और शोभा डे जैसी फ़ितरतों के बारे में
कुछ निश्चित विचार रखता था
लेकिन ऐसे लोग भी दुनिया में काफ़ी थे
और ठेस लग सकती थी
मैं संजय गाँधी और संजय सिंह जैसे लोगों के बारे में भी
कभी-कभी सोचता था
लेकिन इससे युवक कांग्रेस
और इसी तरह के अन्य तत्वों को ठेस पहुँचती
मैं दस्युरानियों दस्युराजाओं
और उनके द्वारा मारे गए लोगों की आत्माओं के बारे में सोचता था
मैं हत्यारों और उनके कला-दलालों के बारे में सोचना चाहता था
लेकिन इससे कला की स्वायत्तता को ठेस पहुँचती
मैं प्रॉपर्टी डीलर्स के बारे में सोचता था जो इस देश के हाकिम थे
मैं असरदार लोगों के बारे में सोचता
कभी उनके मानव अधिकारों
कभी उनकी अग्रिम ज़मानतों के बारे में
जैसे असरदार होना
आजीवन पाप की अग्रिम ज़मानत हो
लेकिन मैं किस-किसके बारे में सोचता
मैं हिटलर और हिरोशिमा के बारे में एक साथ सोचना चाहता था
स्तालिन और निक्सन के बारे में भी
लेकिन मैं जानता था
जो हिटलर के बारे में सोचते हैं
वे हिरोशिमा के बारे में नहीं सोचते
हालाँकि मैं यह भी जानता था
कि नागासाकी या वियतनाम
अमेरिका के निजी मामले नहीं थे
और यह भी कि दोनों जगह
गिनती को बेमतलब कर देने वाली तादाद में
निर्दोष नागरिकों को मारा गया
धीरे-धीरे सभी महत्वपूर्ण विषयों पर
लफ़ंगों का क़ब्ज़ा होता जा रहा था
यह अपराधियों के बारे में सोचने का समय था
हरामकारों के बारे में
हम उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचा सकते थे
और वे हमारी ज़िंदगी को ठेस पहुँचा रहे थे
मैं वोट देना चाहता था
लेकिन किसी निशान पर मुहर लगा देने से
मेरे मत का पता नहीं चलता
मैं हुल्लड़, कीर्तन, रतजगों और सपनों में ख़लल देती अज़ानों से
तंग आ चुका था
मैं चाहता था सोचूँ
और नहीं सोचता था
सोचना और बोलना एक चीज़ होती
मैं हिंदू जीवन जीने की कोशिश करता था
लेकिन उससे हिंदुओं को ही नहीं
मुसलमानों को भी बड़ी तकलीफ़ हो सकती थी
बस समाज में अभी जगह थी
कि मैं कालिदास और सूरदास के बारे में सोच सकता था
पीपल यमुना और हिमालय के बारे में
अपने विचार रख सकता था
और गैलीलियो पर स्वतंत्र रूप से बोल सकता था
उससे किसी भड़ुए को कोई मतलब नहीं था
मैं संविधान और न्यायपालिका के बारे में सोचना चाहता था
लेकिन मैं नहीं सोचता था
मैं राजनैतिक रूप से सही होना चाहता था
लेकिन मैं पाता था कि ऐसा करते-करते
मैं इंसानी रूप से ग़लत होता जा रहा हूँ।
- रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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