जंगल का राजा
jangal ka raja
हममें से बहुत लोग नहीं जानते
कि शेर अपने जंगल के बियाबान में कैसे रहता है
शेर वहाँ हमेशा दम साधे खड़ा रहता है
क्योंकि शेर बने रहने के लिए
ज़रूरी है कि वह सबको नज़र में रखे
पर ख़ुद किसी को नज़र न आए
फिर भी उसके वहाँ होने का एहसास सबको होता रहे
और ऐसी बेहिसाब गणनाएँ करनी होती हैं उसे
अपने रहने की जगह तय करने में
और इस तरह बे-हिसाब ऊर्जा लग जाती है
एक शेर को शेर बने रहने में
शेर बने रहना, यानी आँखों में हर पल ख़ून उतारे रखना
शेर बने रहना, यानी कंधों की पेशियों को
पेड़ की जड़ों की तरह जकड़े रखना
शेर बने रहना, यानी गर्दन की नसों को
पुल के तारों की तरह ताने रखना
क्योंकि शेर बने रहना, यानी ज़रूरत से ज़्यादा जगह घेरे रखना
और लगातार अपने सरमाये पर नज़र गड़ाए रखना
और लगातार अपने बियाबानों की सीमाएँ फैलाना
शेर बने रहना यानी शेर ही बने रहना
जो कि राजा होता है जंगल का
या किसी भी पब्लिक प्लेस का
जहाँ रहना उसे पसंद है...
और जल्दी ही जहाँ वह एक जंगल बना देता है
सोचो ऐसे में कहाँ वह हमेशा एक शेर बने रह पाता होगा?
जब-जब कोई पुराना शेर चुकने लगता होगा
तब-तब कोई नया शेर उगने लगता होगा
इस आदमी को बचाओ
सड़क के किनारे पड़ा हुआ
यह जो धूल में लथपथ आदमी है
जिसके होंठों से गाढ़ी लाल धारी बह रही है
इस आदमी को बचाओ!
इस आदमी की यादों में पसीने की बूँदें हैं
इस आदमी के ख़्वाबों में मिट्टी के ढेले हैं
आँखों में तैर रही दहशत की कथाएँ
यह आदमी अभी ज़िंदा है
इस आदमी को बचाओ!
इस आदमी को बचाओ
कि इस आदमी में इस धूसर धरती का
आख़िरी हरा है
इस आदमी को बचाओ
कि इस आदमी में हारे हुए आदमी का
आख़िरी सपना है
कि यही है वह आख़िरी आदमी जिस पर
छल और फरेब का
कोई रंग नहीं चढ़ा है
देखो, इस आदमी की
कनपटियों के पास एक नस बहुत तेज़ी से फड़क रही है
पसलियाँ भले चटक गई हों
उनके पीछे एक दिल अभी भी बड़े ईमान से धड़क रहा है
ग़ौर से देखो,
अपनी उँगलियों पर महसूस करो
उसकी साँसें
भले ही उखड़ गए हों कंधे
हो चुकी हों नाकारा बाँहें
बेतरह कुचल दिए गए हों इसके पैर
तुम अपने हाथों से टटोल कर देखो
कि इस आदमी की रीढ़ अभी भी पुख़्ता है
यह आदमी अभी भी ज़िंदा है
इस आदमी को बचाओ!
इस आदमी को बचाओ!
- रचनाकार : अजेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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