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देहांतर

dehantar

रति सक्सेना

रति सक्सेना

देहांतर

रति सक्सेना

और अधिकरति सक्सेना

    सात मंज़िल ऊपरी ज़मीन पर तलवे टिकाते ही

    मैं उस ठंडक कर उतार कर रख देती हूँ

    जो गोबर से लिपे आँगन से

    मेरे साथ साथ चली आई है

    स्वेटर की तरह पहन लेती हूँ, खिड़कियों, अलमारियों

    और दीवारों से घिरे उस कमरे को

    आस-पास मेरी देह पर बेल की तरह चढ़ जाता है

    एक घर से निकल कर दूसरे तक जाते हुए

    पिछले घर के कुछ रेशे मेरी देह पर रह जाते हैं

    मेरे दूसरे घर की दीवारें, धूप से बनी हैं

    अँधेरे के साथ खो जाती हैं

    इस घर को पहनना मेरे लिए

    नींद-सा सपनदार होता है

    मैं सपने से हक़ीक़त की तरफ़ चलना शुरू करती हूँ

    इस अंतिम घर में मेरा इंतज़ार करता है

    एक तकिया, बिस्तरे का एक हिस्सा

    और दक्षिण की ओर खुलने वाली खिड़की

    दक्षिण मृत्यु का घर है

    मैं इसे अपनी देह बना कर अपने तकिए पर ले जाती हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रति सक्सेना
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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