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देह के घेरे

deh ke ghere

पद्मा सचदेव

पद्मा सचदेव

देह के घेरे

पद्मा सचदेव

और अधिकपद्मा सचदेव

    छोटे करना ज़िंदगी में लंबे घेरे

    इनसे लटकते हैं रिश्तों के धुएँ

    फूलों की सुगंध लपेटती कहीं

    ज़्यादा कलमकार ही हैं दोमुँहे

    आँख. घेरती कहीं श्वासों के मुँह

    धुआँ दे रहे मैदानों के चूल्हे

    भाख गाती कोई व्रत रखने वाली

    छौंक लगाता कोई फिर भूख के

    ख़ाली बर्तन गर्म पानी की आवाज़

    हमसायों के बर्तनों को दे धुआँ

    घी के बर्तन खुला है पूरा मुँह

    उपलों में उपले ही मिल कर जल रहे

    आग फाँकने को दर्द है खुला

    आज शाम को फिर व्रत हो जाएगा

    बड़े शाह की बहू ने कहा है यूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीरबहूटियाँ (पृष्ठ 70)
    • रचनाकार : पद्मा सचदेव
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2018

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