एक
घर के कोने में धूप
कुछ धुँधली-सी पड़ रही है
रंगीन लिबास में
मुस्कुराहट
नक़ाब ओढ़े घूम रही है
उस गली में पहुँचते ही
वसंत पीला से गुलाबी हो जाता है
इंद्रधनुषी सतरंगी किरणें
उदास एकरंगी हो जाती हैं
वहाँ से गुज़रती हवा
थोड़ी-सी नमदार
थोड़ी-सी शुष्क
नमक से लदी भारीपन के साथ
हर जगह पसर जाती है
हवा में सिर्फ़ देह का पसीना तैरता है
दर्द और उबासी में घुलती हँसी
ख़ूब ज़ोर से ठहाके मारती है
सब रूप बदलकर
मिलते हैं वहाँ
सिर्फ़ मिट्टी जानती है
बदन पिघलने का सोंधापन
और बर्दाश्त कर लेती है
पसीने की दुर्गंध
मिट्टियों के ढूह पर
बालू से घर बनाता है
एक आठ साल का बच्चा
और ठीक उसी समय
एक बारह साल की लड़की
कुछ अश्लील पन्नों को फाड़ती है
और लिखती है आज़ादी के गीत
पंद्रह अगस्त को बीते
अभी कुछ दिन ही हुए हैं।
दो
वक़्त से पहले
अँधेरा दस्तक देता है
शाम होते-होते सभी ख़ुद को
पेट के अँधेरे में गर्त कर लेते हैं
रंगीन कमरों से निकलती रोशनी
आँगन में धुँधली
और दरवाज़े पर अंधी हो जाती है
बच्चे जन्म तो लेते हैं
किस माँ के शुष्क स्तन ने
रोते बच्चे को चुप कराया
तय नही है
माँ मुट्ठियों में वक़्त को धकेलती
भोर के पहले पहर मिलती है
उस वक़्त दिखते हैं अजनबी चेहरे
देहरी से बाहर भागते-फिरते
दुपहर तक खिलखिलाहट में
नमकीन मुस्कुराहट पनाह पाती है
और शाम होते ही
सर्प की तरह फिर से फ़न फैलाती है
हर शाम ज़िंदगी
अपनी परिभाषा भूल जाती है
सिसकियों में घुली खिलखिलाहट
रात भर बेसुरा गीत गाती है
तभी रात क़ब्र में दफ़न
आठ साल का लड़का
कुछ बासी फूलों में साँस फूँकता है
और ग्यारह साल की लड़की के
हाथों में सौंप देता है
क़ब्र के स्याह अँधेरे में
एक जोड़ी आँख चमक उठती है।
तीन
असमय फूल अक्सर यहाँ खिल जाते हैं
फूल खिलना यहाँ एक दर्दनाक हादसा है
अगर खिल गए
तो मसल भी दिए जाते हैं
खिलती मुस्कुराहट पर
सुर्ख़ छींटे पड़ जाती हैं
बदलते दृश्यों में
अजीब सी बौखलाहट तैरती है
भावनाएँ यांत्रिक बन
मुखौटे-सी लगाती हैं
पेट से पूरे बदन पर
चढ़ती आग की भी एक उम्र होती है
उम्र की साँझ पर तपिश
पेट से ही चिपकी रह जाती है
बदन पर नहीं उतरती
तब इंतज़ार मौत से भी बदतर लगता है
अकेला खड़ा तुलसी चौरा
कभी आँखे बंद नहीं करता
आँगन में मुस्कुराता चहबच्चा
सारे आँसुओं को ज़ज्ब कर लेता है
कभी नहीं सूखता
बस दाग़ धोता रहता है
इन्हीं दृश्यों के बीच
आठ साला बच्चा
ढ़ूह की मिट्टी मस्तक पर लगाता है
और ग्यारह साल की लड़की
उसकी उँगली सख़्ती से पकड़ लेती है।
- रचनाकार : यतीश कुमार
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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