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दिसंबर का दूसरा सप्ताह

december ka dusra saptah

ज्योति रीता

ज्योति रीता

दिसंबर का दूसरा सप्ताह

ज्योति रीता

और अधिकज्योति रीता

    कुल जमा दस बरस साथ रहे तुम

    कितने बरस साथ थे

    यह बात अब भूल जाना चाहती हूँ

    हम कई-कई भाषाओं में जीवन जीते रहे

    काम्य भाषा से इतर

    तुमने किसी और भाषा में वार्ता कभी नहीं की

    ही सीखा

    ही समझना चाहा

    वह भाषा चीख़ रही थी

    तुम्हारी नींद गहरी और गहरी होती गई

    प्रेम में दिवालियापन की घोषणा

    उसी वक़्त हुई थी

    जब समझौता हुआ था

    हम अकेले पड़ते जा रहे थे

    सब कुछ वैसा ही था

    सुबह का होना

    शाम का ढल जाना

    शाम की बेचैनी मादक द्रव्य की तरह

    असर कर रही थी

    टूट-फूट की क्रिया निरंतर जारी थी

    अंदर की दीवार के चटकने की आवाज़

    अब साफ़ सुनने लगी थी

    बोलती हुई ज़ुबान अनायास चुप हो गई थी

    मुस्कुराने की भाषा अबूझ पहेली लगने लगी

    तुम्हारे कैलेंडर में शीत की छुट्टी थी

    ही ग्रीष्म की

    छुट्टी में भी मेरे कैलेंडर पर कार्यदिवस अंकित था

    तुम्हारा कैलेंडर मुझ तक आकर अलसाया रहा

    अज़ाब को भूलाने में

    कई-कई लेप तैयार करने होंगे

    लेप की सामग्री का पता तलवों के नीचे है

    क़ाज़ी ने मुँह खोला है

    परंतु निर्णय अभी उनके पेट में है

    दिसंबर का यह दूसरा सप्ताह है

    किसी का आगमन किसी के लौट जाने की सूचना है

    ज़िंदगी के शब्दकोश से

    कई शब्द मिटाएँ और जोड़े गए

    कहानी के पात्र में कई बदलाव होंगे

    पात्र इन दिनों यात्रा पर है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति रीता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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