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हम शाँति के अग्रदूत हैं।

हमारे पीछे कुत्तों का एक-एक समूह है

(हाउंड, माँगरेल, स्पेनियल, टेरियर!)

ख़ूँख़्वार और पालतू कुत्ते

जिनका काम हमारे शत्रु के विरुद्ध भूक-भूक कर आतंक

उत्पन्न करना है।

क्योंकि हम उन्हें सूखी हुई केक देते हैं।

उनके गले में हमारे सोने की ज़ंजीर है।

हमारे मुखों पर बारूद की रोशनी है

जबड़ों में ख़ून है, दाँत शेर के से पैने हैं

पर इन्हें देखकर चौंकने की ज़रूरत नहीं

ये तुम्हारे सपनों का ख़ून है।

वीभत्स, कुरूप और भयावने।

हो सकता है

उनमें से कुछ ताज़े, खिले हुए गुलाब की तरह

और हिरन के सोए बच्चे की अधमुँदी आँखों से अच्छे रहे हों

पर सपने कभी किसी के सगे नहीं हुआ करते।

वह देखो!

कटे हुए नाख़ून की तरह चाँद आसमान के गले में लटका है

उसकी राँगेवाली रोशनी में

दूर वहाँ तालाब के पानी में

ख़रगोश की उधड़ी सफ़ेद खाल की भाँति

तुम्हारे तड़फड़ाते, छटपटाते सपने तैर रहे हैं।

अधूरी नींद ने तुम्हारे सिर में दर्द भर दिया है,

विभ्रमपूर्ण कोलाहल के तूफ़ान तुम्हारे सिर से टकरा रहे हैं।

अनेक प्रकाश!—

चिराग़, बिजली, गैस-तारे, कलई के कारण चमकते अनेक

ज्ञान!—

इन सबसे तुम्हारा जी ऊब उठा होगा।

मिल की चिमनी, बँदूकों और विभिन्न भट्टियों का धुँआ।

टूटते हुए मोम के खंभे, खोह में भटकते हुए पिता

और रेगिस्तान में रोती हुई लड़कियों की मिली-जुली

आवाज़ें!

ये ऊहापोह और संशय की स्थितियाँ!

इन्हीं के विरुद्ध हम जेहाद की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं!

हम वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों और दार्शनिकों के दिमाग़ों को

आग में तपाकर शाँति के फ़ार्मूलों का अंवेषण कर रहे हैं!

अपने सिद्धांतों के परीक्षण में परस्पर स्पर्धा कर रहे हैं!

यद्यपि हमारे कुत्ते हमारे श्रम की प्रशंसा में लगे हुए हैं

पर हमारे वास्तविक परीक्षक तो तुम्हीं हो

क्योंकि किसी दिन

तुम हमारे अंवेषणों के लक्ष्य बनोगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : पहचान सीरीज़, खंड : दो (पृष्ठ 495)
  • संपादक : अशोक वाजपेयी
  • रचनाकार : शिवकुटी लाल वर्मा
  • प्रकाशन : सेतु प्रकाशन
  • संस्करण : 2023

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