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दैनंदिन

dainandin

विनय दुबे

विनय दुबे

दैनंदिन

विनय दुबे

और अधिकविनय दुबे

    तीन मई उन्नीस सौ पचास

    मैं एक आदमी से शाम के वक़्त मिला

    थोड़े-थोड़े बादलों के बीच

    हम थोड़ी देर साथ रहे

    फिर मैं दिल्ली की तरफ़ चला गया

    और वह अपने घर

    अट्ठारह दिसंबर उन्नीस सौ सत्तावन

    मैं श्रीमती ललिता एस के मीरचंदानी से मिला

    उनका घर चार इमलीपाड़ा कलकत्ते में था

    पति लंदन में थे

    और वे अकेली यहाँ

    हमारे बीच झरनों के बारे में बहुत बातें हुईं

    फिर मैं भारी मन लिए वहाँ से उठा

    और चेन्नई के मरीना बीच चला गया

    पच्चीस अगस्त उन्नीस सौ पचहत्तर

    आपातकाल के दिन थे

    मैं मंगतराम हरिद्वार वालों की बारात में था

    बारात शिमला के लिए सुबह दस बजे चली थी

    मैं ट्रेन में सो गया था

    सो किसी से मिल भी सका और ही बातें कर सका

    अट्ठाईस फ़रवरी दो हज़ार तीन

    मैं नौकरी से रिटायर हुआ

    महाविद्यालय से वापस आया

    पास में पाठ्यक्रम दूसरे दिन के लिए काम

    घर में पत्नी से बातें कीं

    मोगरे के एक फूल को देखा भाला

    ईराक़ पर हमला देखा

    बुश को प्रसन्नचित देखा

    अटल बिहारी वाजपेयी को नहीं देखा

    पड़ोसी के कुत्ते की खोज-ख़बर ली

    वाशिंगटन और लंदन और दिल्ली

    और गोंदरमऊ को सोचा

    आँगन का एक उखड़ा पत्थर उठाकर परे धरा

    गेट बंद किया

    दोपहर का खाना खाया और सो गया

    मुझे उठा मत

    मैं सो रहा हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : फ़िलहाल यह आसपास (पृष्ठ 83)
    • रचनाकार : विनय दुबे
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2004

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