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डबलडेकर

DabalDekar

विनोद भारद्वाज

विनोद भारद्वाज

डबलडेकर

विनोद भारद्वाज

और अधिकविनोद भारद्वाज

    यह शानदार शहर

    डबलडेकर से

    और भी

    शानदार

    नज़र आता है

    महान और विशाल

    पोस्टरों पर लेटी हुई

    मोहिनी सुंदरियाँ

    बहुत पास जाती हैं

    डबलडेकर से

    ऊपर के हिस्से पर बैठकर

    पेड़ ज़रूर कभी-कभी

    परेशान करते हैं

    दरअसल उन्हें

    काट दिए जाने के बारे में

    शहर की एक शक्तिशाली कमेटी

    इन दिनों

    विचार कर रही है

    हुआ यह कि

    एक बार

    शहर के मेयर ने

    डबलडेकर से यात्रा की

    कुछ आवारा पेड़ों की

    बेरहम टहनियाँ

    क़रीब-क़रीब

    उनकी आँख में

    घुस गईं

    यह अलग बात है कि

    मेयर के बच्चे

    ख़ुश थे

    ठीक आगे की सीट पर बैठे

    ट्रैफ़िक को वे गिन रहे थे

    सौ की गिनती में

    सवा सौ मारुतियाँ निकल गईं

    लोग ख़ुशहाल हैं

    शहर तरक़्क़ी पर है

    डबलडेकर से

    यह बात ज़्यादा साफ़ नज़र आती है

    असल में

    यह डबलडेकर

    जब पहली बार चली थी

    तो माननीय यातायात मंत्री

    ख़ुद इसे

    झंडी दिखाने आए थे

    इस डबलडेकर का

    रूट विशिष्ट है

    तीन फ्लाईओवर

    और दरियागंज की तरह के

    दस तंग बाज़ार

    इसके रास्ते में आते हैं

    इस बात पर भी

    एक हाई-पावर कमेटी

    विचार कर रही है

    कि इन तंग बाज़ारों से

    डबलडेकर को

    कैसे मुक्ति दिलाई जाए

    डबलडेकर में

    शहर

    एक कविता में बदल जाता है

    पुराने क़िले की

    प्राचीन दीवारें

    आपके ठीक बग़ल में खड़ी होती हैं

    बस एक दिक़्क़त है

    चीज़ों को इतना ऊपर से

    देखने की

    श्मशान घाट भी

    डबलडेकर से साफ़ नज़र आता है

    मृतक के सगे-संबंधी

    जो दृश्य नहीं देख पाते

    वे आप देखते हैं

    और फिर

    तेज़ चलती हुई बस में

    चिड़िया की तरह

    आँखें

    मूँद लेते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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