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पूछो तो

puchho to

हरे प्रकाश उपाध्याय

और अधिकहरे प्रकाश उपाध्याय

    कब तक मौन रहोगे

    विवादी समय में यह पूछना बहुत ज़रूरी है

    पूछो तो अब

    यह पूछो कि पानी में

    अब कितना पानी है

    आग में कितनी आग

    आकाश अब भी कितना आकाश है

    पूछो तो यह पूछो

    कि कितना बह गया है भागीरथी में पानी

    कितना बचा है हिमालय में

    पूछो कि नदियों का सारा मीठा पानी

    आख़िर क्यों जा डूबता है

    सागर के खारे पानी में

    पूछो

    मित्रो, मैं पूछता हूँ

    आदमी का पानी

    कब उड़ जाता है

    मेरी-तुम्हारी आँखों में

    बचा है अब कितना पानी

    खोजो कहीं चुल्लू भर ही पानी

    डूब मरने के लिए

    पानी के इस अकाल समय में

    नाविकों और मछलियों से कहो

    वे अपने भीतर बचाए रखें पानी

    उन्हें दुनिया को पार लगाना है

    जंगलों से कहो वे आग बचाएँ

    ठंडी पड़ती जा रही है यह दुनिया

    ख़त्म हो रही है आत्मा की ऊष्मा

    देर मत करो पूछो

    आग दिल की बुझ रही है

    धुआँ-धुआँ हो जाए छाती इससे पहले

    मित्रो, ठंड से जमते इस बर्फ़ीले समय में

    आग पर सवाल पूछो

    माचिस तीली की टकराहट की भाषा में

    तय कर लो

    आग कहाँ और कितनी ज़रूरी है

    क्या जलना चाहिए आग में

    क्या बचना चाहिए आग से

    पूछो आकाश से तो

    क्यों भागता जाता है ऊपर

    हमसे क्यों छिनी जा रही है क़द की ऊँचाई

    हाथ बढ़ाओ और

    आकाश से सवाल पूछो

    कि हमसे भागकर कहाँ जाओगे

    तुम हमारे क़द पर कब तक ओले गिराओगे

    मित्रो, उससे इतना ज़रूर पूछो कि

    हमारे हिस्से की धूप

    हमारे हिस्से की बिजली

    हमारे हिस्से का पानी

    हमारे हिस्से की चाँदनी का

    जो मार लेते हो रोज़ थोड़ा-थोड़ा हिस्सा

    उसे कब वापस करोगे

    मित्रो, यह ज़िंदगी है

    आग पानी आकाश

    बार-बार पूछो इससे

    हमेशा बचाकर रखो एक सवाल

    पूछने की हिम्मत और विश्वास

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरे प्रकाश उपाध्याय
    • प्रकाशन : हिंदी समय

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