जानना एक लंबी प्रक्रिया है
पूरी उम्र साथ रहकर भी
हम ख़ुद को ही नहीं जान पाते ठीक से
स्थितियाँ और घटनाएँ जानती हैं हमें बेहतर
जो हमसे हमेशा अपने मुताबिक़ काम करवा ले जाती हैं
एक इनसान कितनी बातें जान सकता है
कितनी चीज़ों और कितने लोगों को
इसलिए वह जानने का अभिनय करता है
कई बार वह नहीं जानने का भी अभिनय करता है
जानते हुए कि वह जानता है सब कुछ
जानना एक तकलीफ़ से भरी हुई प्रक्रिया है
उसमें बुरी चीज़ें भी शामिल होती हैं
ख़ुद को जानना अपने दुर्गुणों को जानना भी है
अपने स्वार्थों और चालाकियों को भी
मैं अपनी माँ को माँ की तरह जानता हूँ
उस तरह नहीं जिस तरह मेरी पत्नी जानती है उसे
एक पारंपरिक सास और एक मुश्किल औरत की तरह
एक अनंत प्रक्रिया है जानना
आदि से अंत और उसके पार अनंत तक पहुँचती
पूर्वजों का जाना हुआ अब हमारा जाना हुआ है
हमारा जाना हुआ अगली पीढ़ियाँ जान ही जाएँगी
एक आदमी को एक साल में
एक साल जितना ही जान सकते हैं हम
एक झलक में एक झलक जितना
माता-पिताओं को अपनी उम्र जितना जानते हैं हम
बच्चों को उनकी उम्र जितना
मैं पहाड़ों को जन्म से जानता हूँ
अपने पिता की तरह
मैं पेड़ों को अपनी माँ की तरह जानता हूँ
उन्होंने कभी दग़ा नहीं दिया, कहीं छोड़कर नहीं गए वे
उनकी छाया ने हमेशा मेरा इंतज़ार किया
जबकि बहुत कुछ अनजाना है चारों ओर
मैं थोड़ा-थोड़ा जानता हूँ रोज़
शहर को थोड़ा और
रास्तों को थोड़ा और
दोस्तों को थोड़ा और
पहले से जाने हुए को भी
थोड़ा और!
- रचनाकार : सुंदर चंद ठाकुर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.