पानी और प्यास के उद्गम-स्थलों की खोज में
pani aur pyas ke udgam sthali ki khoj mein
दिलीप शाक्य
Dilip Shakya
पानी और प्यास के उद्गम-स्थलों की खोज में
pani aur pyas ke udgam sthali ki khoj mein
Dilip Shakya
दिलीप शाक्य
और अधिकदिलीप शाक्य
हज़ारों मरुस्थलों की प्यास गठरी में बाँधकर
लौट रहा था मैं
रौशनियों के शहर से नाउम्मीद
कि ठहर गया तुम्हारी आँखों के समुंदरों में
बहुत दूर तक चमकती
नदियों के विस्तार देखकर
खूँटे से बँधी रस्सियाँ तोड़कर
काल की अनुपम हवाओं में उड़ चले
इच्छाओं के करोड़ों तुरंग
तुम्हारा नया आसमानी उत्तरीय लपेटे
एक पुरानी नाव में सवार मेरी देह
निकल पड़ी
पानी और प्यास के उद्गम-स्थलों की खोज में
सीने में दबाए सूरजमुखी के फूलों की
मुस्कुराती क्यारियाँ
विवश बेक़रार मेरा अक्स
निरंकुश पीली आँधियों के भयावह वेग में
चिपका रहा
एक हरे पेड़ की लटकी हुई डाल से
धरती के महावर लगे पैरों में
फिर उभरने लगा
फटी हुई बिवाइयों का असहनीय दर्द
ओक में भरकर धूल के बवंडर
चाँदनी रात के हसीन चेहरे पर
फेंक रही थीं लगातार
बीहड़ घाटियों की लहूलुहान कुहनियाँ
- पुस्तक : कविता में उगी दूब (पृष्ठ 82)
- रचनाकार : दिलीप शाक्य
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2015
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.