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धरती जानती है

dharti janti hai

येहूदा आमिखाई

अन्य

अन्य

येहूदा आमिखाई

धरती जानती है

येहूदा आमिखाई

और अधिकयेहूदा आमिखाई

    धरती जानती है कि बादल कहाँ से आते हैं

    कब आती हैं गर्म हवाएँ

    कब नफ़रत और कब प्रेम

    धरती जानती है लेकिन इसमें रहने वाले भ्रम में हैं

    ‘उनके दिल पूरब में हैं और शरीर सुदूर पश्चिम में’

    प्रवासी चिड़ियों की तरह

    जिन्होंने खो दीं अपनी गर्मियाँ और सर्दियाँ

    शुरुआत और अंत

    और जो प्रवास करते रहे अपने सभी दिनों में

    दर्द की इंतहा तक

    धरती पढ़ और लिख सकती है

    खुली हुई हैं इसकी आँखें बेहतर होता कि ये भी अनजान रहतीं

    इस पर रहने वाले लोगों की तरह

    अंधी और टटोलती हुई अपने बच्चों को

    बिना उन्हें देखे

    इज़रायल की यह महान धरती

    एक भारी और मोटी औरत की तरह है

    और इसका राज्य

    लचीली-पतली कमर वाली एक नौजवान औरत की तरह

    लेकिन इन दोनों में

    यरूशलम हमेशा से इस धरती की योनि है

    एक उत्तप्त-उदग्र-अतृप्त योनि

    एक धड़कती-चीख़ती चरम कामसुख कामना

    जो नहीं पहुँच सकेगी अपने अंत तक

    जब तक कि मसीहा जाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरती की सतह पर (पृष्ठ 88)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक अशोक पांडे, शिरीष कुमार मौर्य
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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