रहमान का स्वगत कथन
rahman ka swagat kathan
पैग़म्बर एक है जैसे अल्लाह भी
रेगिस्तान में हृदय जितना ओएसिस
हाथों तले हरियाली
वरदहस्त और मस्तक
अस्तित्व जहन्नुम से जन्नत तक
एक ही नियम का इन्द्रधनुष
आदमी मूलतः काफिर है
बुतखाना है जिसका बोध
मेरे अंधेपन में है
परवरदिगार और काबा
इतना सा विरह तुमसे सहा नहीं जाता
और दोस्त, तुम्हारा नाम है इरशाद
तुम्हारी प्रेमिका का नाम सलमा
और गाँव का मोहब्बत?
याSल्ला! परवरदिगार!
मैं तो अंधा हूँ
सिर्फ़ तुम्हें देखने वाला
और इन आँख वालों की आँखें
एक-दूसरे में ही खो गयी हैं!
- पुस्तक : मैजिक मुहल्ला खंड दो (पृष्ठ 33)
- रचनाकार : दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2019
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