मित्रों की दुनिया
mitron ki duniya
एक
एक समय पर मेरा ख़याल था
कि मेरे भी मित्र हैं
मैं उस दुनिया में रहती थी
जो उनकी थी
वे बार-बार याद दिलाते थे
कि मैं एक स्त्री हूँ
वे बताते थे अपनी दुनिया के नियम
कभी-कभी मुझे लगता था
मैं अपनी दुनिया में हूँ
तब वे मुझे क्षमा करते थे
उदारता से
वे मुझे बहुत-सी छूट देते थे
और मुझे बना रहने देते थे
अपनी दुनिया में
वे अच्छे मालिक थे
बाद में जब मैं
उनकी ज़मीन छोड़ना चाहती थी
मुझमें उड़ने की बहुत तेज़ इच्छा थी
यह इच्छा उन्हे बड़ी रंजनकारी लगती थी
उनमे से कोई-कोई
इस इच्छा पर मुग्ध हो जाता था
और इसका उपभोग करना चाहता था
उन दिनों मैं रेत में नहाना चाहती थी
वे नहीं जानते थे
और पता नहीं क्या देखते थे
मेरे अंदर कि कभी-कभी
दुलार से हँसते थे
एक दूरी के साथ।
दो
कभी-कभी मुझे याद आती है
उस आदमी की आवाज़
जिसके बारे में
कभी मेरा ख़याल था
कि वह मेरा प्रेमी है
वह आवाज़ एक आदेश की तरह
निष्कर्षात्मक होती है
कभी-कभी वह एक
फुसलाने वाली ध्वनि की तरह होती है
जिसकी ओर अहिंसक जानवर
आकर्षित होते हैं
कभी-कभी यह आवाज़ एक
छींटे की तरह होती है
जो बाद में त्वचा पर एक
फफोले की तरह उभर आती है।
तीन
वे कहते थे
हम बराबरी में
यक़ीन करते हैं
वे सभा में बुलाते थे
और मुझे भी
बोलने का समय देते थे
जब मैं बोलती थी वे मुग्ध से
मुझे देखते थे या सुनते थे
कभी-कभी वे कहते थे कि
मेरी बातें उनकी समझ में नहीं आतीं
और तनावमुक्त हो जाते थे
मेरी खुदाई के निशान बंजर ज़मीन
पर कम मेरे हाथों पर ज़्यादा पड़ते थे
मैं पानी देती थी उनके खेतों में
वे अपनी फ़सल लेकर मंडी में जाते थे
मैं क्या लेकर जाती मंडी में
पानी के साथ मेरी मेहनत
ख़र्च हो चुकी होती थी।
- रचनाकार : शुभा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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