अपना अहंकार तुम गाते रहे रात भर
apna ahankar tum gate rahe raat bhar
कृष्ण मुरारी पहारिया
Krishna Murari Pahariya
अपना अहंकार तुम गाते रहे रात भर
apna ahankar tum gate rahe raat bhar
Krishna Murari Pahariya
कृष्ण मुरारी पहारिया
और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया
अपना अहंकार तुम गाते रहे रात भर
अब प्रभात में मुझको भी कुछ कह लेने दो
मैंने ही दृढ़ अंधकार की परतें तोड़ीं
और तुम्हारी अजगर जैसी बाँहें मोड़ीं
मेरी धरती पर किरणों के तृण लहराएँ
इसीलिए तो मैंने कठिन ज़मीनें गोड़ीं
तुम काला विध्वंस रचाते रहे रात भर
अब प्रभात के ज्योतित क्षण को रह लेने दो
जितना हो सकता था तुमने विष फैलाया
औरों की तड़पन देखी, त्योहार मनाया
लेकिन सब का समय एक-सा कब होता है
डूबा निशि का राग, प्रभाती का स्वर आया
तुम अपनी फुफकार छोड़ते रहे रात भर
अब प्रभात के मलय-पवन को बह लेने दो
- पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 45)
- रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
- प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
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