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अनिवार्य छैक उपक्रम

anivarya chhaik upakram

सुस्मिता पाठक

अन्य

अन्य

सुस्मिता पाठक

अनिवार्य छैक उपक्रम

सुस्मिता पाठक

और अधिकसुस्मिता पाठक

    जंगलसँ निकलि

    हम सब जंगलमे भटकैत रहैत छी अहर्निश

    हमरा सबकेँ नीक लगैत रहैत अछि

    एकहि ठाम चकभाउर दैत

    एकहि ठाम स्थिर रहब

    हमर सभक गतिशीलता चेतनापर

    जेना बर्फक एकटा पहाड़ औन्हल रहैत अछि

    हम सब गलैत रहैत छी चुपचाप

    स्वभावे बनि गेल अछि एहने

    नीक लगैत रहैत अछि हमरा सबकेँ

    गतिहीनताक मुद्रा

    मुदा आब तोड़हि पड़त एकरा

    बर्फक पहाड़केँ हटबय पड़त कपार परसँ

    नहि तँ आरो कहियाधरि

    गलैत रहब सभ क्यो एहिना

    नहि नहि, ओना नहि चलत काज

    फाड़ू एहि अन्धकारकेँ

    अथवा कंठमे दियौक आंगुर

    किछुओ आवाज तँ होयत

    विरोधक कोनो आवाज

    आवश्यक छैक

    गतिहीनताकेँ तोड़बाक लेल

    चेतनाक नव-नव आयामसँ जुड़बाक लेल

    अनिवार्य छैक उपक्रम।

    स्रोत :
    • पुस्तक : परिचिति (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : सुस्मिता पाठक
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 1997

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