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प्रिय! क्या उपहार दूँ

priy! kya uphaar doon

जावेद आलम ख़ान

जावेद आलम ख़ान

प्रिय! क्या उपहार दूँ

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं मेरे पास

    सिवाय पिघली हुई साँसों के

    और शहद तले अल्फ़ाज़ों के

    देने को दे सकता हूँ

    तुम्हें अपनी आत्मा की स्याही

    कि इससे विरह-गीत तो

    लिखा ही जा सकता है

    लेकिन जानता हूँ

    शब्दों की फंदेबाजी से उबका जाती हो तुम

    सोचता हूँ एक चुम्बन दे दूँ

    चिबुक से थोड़ा ऊपर

    जहाँ अधरों की सीमा शुरू होती है

    पर प्यार करने का यह बासी तरीक़ा ठहरा

    और कुछ नहीं तो बूँदाबाँदी के बीच

    हाथ पकड़कर लॉन में टहलते हुए

    उड़ते बादलों के बदलते हुए रंगों पर

    बात की ही जानी चाहिए

    लेकिन जब दुनिया में इतने रंग बिखरे हो

    तो मौसमों की बदमिज़ाजी में

    तुम्हारे लिए ज़ेरे-बहस कोई बात भी नहीं दिखती

    प्रिय! क्या उपहार दूँ

    इस पुरानी काया में

    कुछ भी तो नया नहीं मेरे पास

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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