मुझे लगा शिक्षित और सभ्य होने की होड़ में
नारीवादी होना एक अनिवार्य पैमाना है
फिर में उसका ढोंग रचता रहा
मैंने पहले तुमसे प्रेम किया और फिर
तुमने मुझसे
हमने धीरे-धीरे एक-दूसरे को जाना
मुझे तुम्हारी ज़रूरत ज़्यादा थी
तुम्हें कम। अब तुम मुझे ज़्यादा चाहती हो
ज़्यादा प्रेम करती हो
तुमने मेरे लिए सब कुछ भुला दिया
एक-एक कर के
तुम्हें अकेले रहना ज़्यादा पसंद था
फिर तुम्हें मुझसे प्रेम हुआ, तुमने अकेले रहने की व्यवस्थाएं ख़त्म की
मुझे अपने साथ लिया।
पर मैं कैसे अकेले आता?
तुमने कब धीरे-धीरे सबको स्वीकार किया मुझे पता भी नहीं चला
तुम मुझसे पढ़ने में बेहतर थी, घर की दुलारी थी
चूल्हे चौके में तुम्हारा विश्वास नहीं था, जो कोई ग़लत बात नहीं थी।
बच्चों से भी तुम्हें कोई ख़ास लगाव नहीं था, तुम्हें जीवन अपने लिए जीना था।
फिर तुमको मैं मिला, मैं तुम पर चीज़े थोपता रहा
प्रेम के लिए आग्रह करता रहा, तुम थोड़ा-थोड़ा प्रेम देती रही
मेरी आकांक्षाएँ बढ़ती रहीं, एकल जीवन चाहने वाली
कब पाँच लोगों के बीच फँस गई शायद उसे पता भी नहीं चला।
तुम्हें मैंने नौकरी करने दी और अधिकतर पैसे अपने काम में लिए
तुम थक कर घर आती
सबके लिए खाना बनाती
कोई तुम्हें धन्यवाद तक ना कहता
तुम्हें प्यार करना मैं भूल ही चुका था
तुम्हें शायद अब उसकी चाह भी नहीं रह गई थी।
अब तुम मेरे साथ नहीं हो
लोग मानते हैं कि दूर आकाश में तुम कहीं हो
जहाँ से हरदम तुम मुझे देखती हो
अब भी प्रेम करती हो
अब भी अपना सर्वस्व देना चाहती हो
जीवन के इस ढलते वक्र पर अब जब
मुझे अपनी साँसे भी साफ़-साफ़ सुनाई देने लगी हैं
मेरे पास करने को कुछ भी नहीं
अपनी अधखुली आखों से तुम्हारी तस्वीर निहारता हूँ
और ख़ुद को कोसता हूँ
कि तुमने मुझे प्यार क्यों किया?
तुम्हें जीवन अपने लिए जीना था
जो कोई बुरी बात नहीं थी
- रचनाकार : मयंक यादव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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