एक छिपे घूँघट से दुख का दिन शुरू होता है
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि
आपके पास आज की योजना क्या है
आकाश की गहराई देख रहे हैं?
क्या आप आज इतिहास पढ़ रहे हैं!
अब लिख लीजिए इसे
ख़ुशी हमेशा दुख के दरवाज़े के पीछे छिपती है
जब आपके पास सबसे अकेला पल होता है
ईश्वर आपको अपने हाथों में उठाए हुए होता है
क्या आपने कभी दुख की सचाई को स्वीकार किया है?
वह हमेशा अपने हमसफ़र के लिए एक लंबा रास्ता तय रखता है
मैं अपना दरवाज़ा खटखटा रही हूँ
दूसरी भाषा में इसका एक जवाब है
क्या आप अज्ञात के रहस्य की लय को जानते हैं?
हाँ, मुझे पता है
यह एक लंबी और अनंत चुप्पी है
जो एक आकाश की तरह है।
- रचनाकार : प्रेमा झा
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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