चिड़ियों के निष्कासन के ख़िलाफ़ एक बयान
chiDiyon ke nishkasan ke khilaf ek byan
बद्री नारायण
Badrii Naaraayan
चिड़ियों के निष्कासन के ख़िलाफ़ एक बयान
chiDiyon ke nishkasan ke khilaf ek byan
Badrii Naaraayan
बद्री नारायण
और अधिकबद्री नारायण
कितनी तेज़ी से
कविताओं से चिड़ियाँ ग़ायब होती गई हैं
कितनी तेज़ी से ग़ायब होते गए हैं
कविताओं से पेड़
मैं हतप्रभ हूँ देखकर
कि कितनी तेज़ी से ग़ायब हुए हैं कविताओं से
पोखर और तालाब
मैं आज तक यह समझ नहीं पाया
कि क्यों कविताओं से ग़ायब होता गया है
ग़रीब-ग़ुरुबा आदमी
हाल के सालों में जिन-जिन ने लिखी हैं
ग़रीबी पर कविताएँ
वे क्यों देशनिकाला काट रहे हैं
कोई कलप-कलप कर रहा है गुज़ारा
कई को गुमनाम होना पड़ा है
कई को नदी में डूबकर करनी पड़ी हैं आत्महत्याएँ
लेकिन ये जो दिख रहे हैं ग़रीबी के ख़िलाफ़ सनातन संघर्ष में लिप्त
ये कौन लोग हैं
खाए जा रहा है मुझे यह सवाल
मैं पीछे का इतिहास उलटकर देखता हूँ
देखिए
कितनी तेज़ी से ख़ारिज हुई हैं
कविताओं से माँ और प्रेमिका की यादें
अब ठीक से याद नहीं कि
कब से हुआ
सत्तर के दशक से या अस्सी से
कविता के इतिहास में आ गया एक ऐसा मोड़
कि मध्यवर्गीय इच्छाओं के ख़िलाफ़ प्रतिरोध
लगभग असंभव-सा हो गया
छा गईं ए.सी. की टिकटें, छा गया हिंदी कविताओं का
विदेशी भाषाओं में भदेस अनुवाद
चुप्पी, चीख़, सिसकी, गान
कविताओं में सारे भाव व्यर्थ हो गए
न जाने भाषा अंधी हुई
कि प्रतीक बहरे
कि पाठक ही गूँगे हो गए
या हिंदी समाज को लग गई सुनबहरी
कितनी तेज़ी से कविताओं में सब कुछ बेअर्थ होने लगा है
यह ज़रूर इस सभ्यता का सर्वग्रासी संकट है
कि शब्दों से अलग हो गए हैं भाव।
- पुस्तक : खुदाई में हिंसा (पृष्ठ 33)
- रचनाकार : बद्री नारायण
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2010
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