लाजवंती को छूते ही
उसकी फैली हुई पत्तियाँ
सिमटने लगती हैं।
बंदकर लेती हैं
अपने सारे विस्तार,
समेट लेती हैं अपनी बाहें,
ढँक लेती हैं अपने चेहरे,
सहम जाती हैं,
और गुम-सुम हो जाती हैं।
उनको चाँद, सूरज, हवा और बारिश की छुअन से
कोई ऐतराज न था,
उन्हे अपने पास में खड़े
चिड़-चिड़े, भटकटैया और भड़भाँड़ से भी
कोई झिझक नहीं थी,
कठबेर, पत्थरचट्टा, पेंहटुल, बेहया और करोदें से
कोई असहजता नहीं थी,
अकवन, कटसरैया, हुरहुर और वनभंटे से
उसे कोई पर्दा नहीं था।
लेकिन मेरी छुअन पर नहीं है
उसको भरोसा।
उसके पास छुअन की ही
आँखें हैं, कान हैं
और वाणी है।
सब कुछ कह-सुन लेती है छुअन।
- रचनाकार : अखिलेश जायसवाल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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