छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी कविताएँ
chhote chhote logon ki chhoti chhoti kawitayen
बद्री नारायण
Badrii Naaraayan
छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी कविताएँ
chhote chhote logon ki chhoti chhoti kawitayen
Badrii Naaraayan
बद्री नारायण
और अधिकबद्री नारायण
छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी कविताएँ
छोटी-छोटी जगहों में रहती हैं
सींक भर छेदों, चींटी के बिलों
भुरकी व खोढ़रों में भी
लय बन बहती रहती हैं।
किसी को ख़बर तक नहीं
महाजनों के महाआख्यानों के बिल्कुल बग़ल में
टूटे-फूटे शब्दों में बनती हैं
छंद, मात्रा, अलंकारों से हीन
जीती हैं लयों में ससरती हुईं
छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी कविताएँ
कविताएँ हेला, छीपी, रंगरेज़ों की
प्रजा की, रंग की, भुक्खड़ों और दुक्खड़ों की
अनंत कविताएँ
जिन्हें कोई लिखे या न लिखे
जिन्हें कोई पुरस्कार मिले या न मिले
अपनी पूरी ऐंठ में रहती हैं
मंदिर के रागों, देवी के कीर्त्तन, दरबारी मनोरंजन
कविता के महामहोत्सवों से बिल्कुल भिन्न
रहती हैं रोज़-रोज़ करती हुई चकनाचूर
काल को अपनी झाड़ू, हथौड़ों व रंग-बिरंगे सपनों से
छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी कविताएँ
छोटी-छोटी जगहों में रहती हैं
क़िला हो, दुर्ग या राजमहल
महान स्थापत्यों में करती हुईं छेद
अपने लिए जगह सिरजती हैं
कहीं तोड़ती हुईं
कहीं फोड़ती हुईं
अपनी दुनिया रचती हैं
मंचों-प्रपंचों में भले न दिखें
कई बार तो अस्फ़ुट अभिव्यक्तियों में
रहती हैं
कई बार आती हैं शब्दों में
कई बार शब्दों में आने से मना करतीं
प्रायः आएँ, बाएँ, कोने-अँतरे इनारे-किनारे ही
रहती हैं
करघे में, राँपी में, चाकों में, सुए में
कुएँ में
अग्निवन में विचरती हैं
जुड़ती हुई आपस में
महान गीतों को देती हुई मात
छोटे-छोटे लोगों की
छोटी-छोटी कविताएँ
छोटी-छोटी जगहों पर रहती हैं।
- पुस्तक : खुदाई में हिंसा (पृष्ठ 136)
- रचनाकार : बद्री नारायण
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2010
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