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छद्मवेश

chhadamvesh

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

हृषिकेश मल्लिक

और अधिकहृषिकेश मल्लिक

    दिन बीत रहे जितने, उतना ही

    हलक सूख रहा, ज़्यादा-ज़्यादा।

    पलट कर पहनी साड़ी-सी

    देह, मुझे पलटनी होगी:

    जगह-जगह देखो, दिख रहे

    इस साड़ी में आँचल फटने के दाग़

    कैसे उतारूं यह देह?

    सोच-सोच कर अनाथ बच्चे-सा

    दिख रहा चेहरा।

    'मैं' कैसे एतबार होगा तुम्हें मुझ पर?

    लहर जानेगी कि, मैं हूँ

    कान, नाक, आँख, होंठ पहने, हाथ-पाँव

    पहने मुट्ठी भर शून्यता।

    देखते-देखते मेरी देह से सूख गया ख़ून

    डरता है ख़ास, कहीं किसी दिन

    प्रतारक बन पहने कपड़े जाओ,

    कैसे देह गई, झूठे हाथ-पाँव देह में लगाए?

    चुनकर गला एक देह में लगाया।

    कमर पहनी ख़ूब क्षीण-सी

    तिल फूल-सी नाक बनाई मैंने

    कैसे बहके आँख-होंठ मैंने पहने?

    झूठ-मूठ रजवती हो गई मैं?

    देखो, बात खुलने की आशंका में

    कैसे भरा मेरे चारों ओर:

    कैसे भरा है घर मेरा, भविष्य मेरा

    देखो, अधिक देह सटे लोग

    आँख टिमटिमाकर देखते मुझे।

    बोलो तो ख़ुद देख :

    यों कलबलाता मरता रहूँगा कितना??

    कितने दिन तुम्हारे पास

    ख़ुद को छुपाऊँगा?

    हर आवरण मेरा

    तुम लक्ष्य करते

    कब तक इधर-उधर होता रहूँगा?

    कितनी देर हाथ जोड़े

    तुम्हारे आगे खड़ा रहूँगा?

    कितनी देर और मैं

    आख़िर विचलित रहूँगा?

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 273)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : हृषिकेश मल्लिक
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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