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चाय और भाप

chay aur bhap

नवीन रांगियाल

नवीन रांगियाल

चाय और भाप

नवीन रांगियाल

और अधिकनवीन रांगियाल

    उन्हें चाय में दिलचस्पी थी

    मुझे उसकी भाप में

    और होटल और चाय के खेतों में

    काम करने वाले लोगों में

    वे समझते थे कि

    माचिस की तीली से आग निकलती है

    मुझे पता था कि

    उससे जान निकलती है

    वे कवि होना चाहते थे

    मैं कविता लिखना चाहता था

    उन्हें बोलने में भरोसा था

    मैं चुप रहने में यक़ीन था

    वे कहते थे कि

    पेड़ों से छाँह मिलती है

    मैं कहता था कि

    पेड़ों से कुल्हाड़ियों के हत्थे बनते हैं

    पलंग, कुर्सियाँ, घर के दरवाज़े

    और शवों के लिए लकड़ियाँ मुहैया होती हैं

    उनका मानना था कि

    घर सोने के लिए जाया जाता है

    मैं मानता था कि घर जागने के लिए है

    और अपने कपड़े बदलने के लिए

    और वहाँ से कहीं और जाने के लिए

    वे आँखों और कनखियों पर मरते थे

    मुझे आँखों से नश्तर चुभते थे

    वे दर्द से दर्द का इलाज करते थे

    मैं दर्द में कराहता और रोता था

    वे मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते थे

    मैं पहले रोटियाँ बनाता

    फिर उन्हें बेचता

    और फिर अपना पेट भरता था

    वे कविताओं के लिए

    चाँद, सूरज, पत्ते, फूल, प्रेम और नदियाँ चाहते थे

    मुझे लिखने के लिए

    चाक़ू, ख़ंजर और नफ़रत चाहिए

    हमारे सोचने के तरीक़ों में

    ज़मीन और आसमान का फ़र्क़ था

    और यह फ़र्क़ हम दोनों को

    इसी ज़िंदगी से मिला था

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवीन रांगियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए द्वारा चयनित

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