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‘चातुर्मास’

‘chaturmas’

बबली गुज्जर

बबली गुज्जर

‘चातुर्मास’

बबली गुज्जर

और अधिकबबली गुज्जर

    तुम्हारी अनुपस्थिति ने दिया है मुझे

    ऐसा कठोर अभिशाप

    मेरे मन आँगन को नहीं तर कर पाया

    इस बरस भी चातुर्मास

    मेरी नींद का कर स्थाई हरण

    मेरे आराध्य!

    कैसे हो जातें हैं निंद्रामग्न…

    मैं तनिक मेघ घोर से

    घबरा जाने वाली मंदनाडी

    अकेले सह रही हूँ कातर वज्रपात

    मेरी नेकनियति और बदक़िस्मती में

    रहा है घोर स्नेह सानिध्य आजीवन

    नहीं छूट सका दोनों का हाथ

    कोई गहन दुःख मेरे भीतर

    हिलोरे मार-मार कर उठ रहा है

    मैं अभी जीवन से इतनी भी नहीं हारी

    तुम्हें याद कर मुस्कुरा लेने का साहस जुट रहा है

    लेकिन नीम सत्य यही है

    कि ईश्वर की फटकार से हारे हुए लोग

    और मौसम की मार के कुम्हलाए फूल

    पुनः किसी मौसम में नहीं खिलते

    खो जाने वाले लोग मिल जाते हैं

    किसी अनजान राह में कभी

    बदल जाने वाले हमसफ़र

    फिर कभी नहीं मिलते

    यह वर्षा मेरे निरीह देह में भी

    नहीं खिला सकती

    ...सुख कमल कभी

    सावन सिर्फ़ जंगल और ज़ख़्म

    हरा कर पाते हैं मेरे प्रीतम

    ...जीवन नहीं!

    स्रोत :
    • रचनाकार : बबली गुज्जर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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