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मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

mujhe ruk jana hai brahman

बच्चा लाल 'उन्मेष'

बच्चा लाल 'उन्मेष'

मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

बच्चा लाल 'उन्मेष'

और अधिकबच्चा लाल 'उन्मेष'

    मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

    मैं तुम-सा नहीं बनना चाहता...

    श्रेष्ठता का यह बोध

    कहीं मुझसे मेरी मनुष्यता छीन ले।

    मैं रहना चाहता हूँ उन सबके बीच

    जिन्हें तुमने कभी मनुष्य समझा ही नहीं।

    मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

    मैं तुम सा नहीं बनना चाहता...

    ये तुलसी दल की महिमा

    कहीं मुझे पक्षपाती बना दे

    मैं रहना चाहता हूँ उनके बीच,

    नीम के पत्तों जैसा

    जिन्हें तुम अब तक डँसते आए,

    अपनी मधुर वाणी से।

    मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

    मैं तुम-सा नहीं बनना चाहता...

    यह मोक्ष वाला अनुभव

    कहीं मुझसे मेरी धरती छीन ले

    मैं देखना चाहता हूँ क़ायनात के अंत तक

    तुम्हारे इन पागलपन की हदों को।

    मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

    मैं तुम-सा नहीं बनना चाहता...

    ये दिन भर बैठे प्रवचन झाड़ना

    कहीं मुझसे मेरी कार्य शक्ति ही छीन ले

    मैं रहना चाहता हूँ उन सबके बीच

    जिनके हिस्से में मेहनत तो आई पर रोटी नहीं

    मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

    मैं तुम-सा नहीं बनना चाहता...

    ये मनु व्यवस्था में एकतरफ़ा रियायत

    कहीं मेरा न्यायिक चरित्र ही छीन ले

    मैं बने रहना चाहता हूँ संविधान की प्रस्तावना में

    जिसमें तुम भी देवता नहीं रह जाते

    और हो जाते हो मनुष्य

    मुझे रुक जाना है ब्राह्मण!

    मैं तुम-सा नहीं बनना चाहता...

    स्रोत :
    • रचनाकार : बच्चा लाल 'उन्मेष'
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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