मैं बुद्ध के नहीं बल्कि उसके शरण में गया था
main buddh ke nahin balki uske sharan mein gaya tha
आसित आदित्य
Aasit Aditya
मैं बुद्ध के नहीं बल्कि उसके शरण में गया था
main buddh ke nahin balki uske sharan mein gaya tha
Aasit Aditya
आसित आदित्य
और अधिकआसित आदित्य
मेरा उससे देह का कम
आत्मा का संबंध अधिक था
(अपनी देह के ताप से झुलसकर मर जाओ तुम
यदि तुम्हारे होंठों पर तैर रही है कुटिल मुस्कान एक)
सँकरी गली के आख़िरी छोर पर
खड़े पुराने तिमंज़िले मकान में कमरा लेकर रहती थी वो
कबसे रहती हो यहाँ? पूछने पर कहती
रंडियों का वक़्त कछुए की चाल चलता है दोस्त
मैं झेंप जाता
मुझे उससे नहीं
उसे संबोधित किए जाने वाले शब्द से नफ़रत था
आख़िर किस मुँह से कहता उसे रंडी मैं
जब मैंने ख़ुद गिरवी रख दी थी आत्मा अपनी
अब...जीवन का दूसरा या तीसरा नरक भोगते हुए
जब कभी किसी दोग़ले-सभ्य इंसान के मुँह से सुनता हूँ
रेड लाइट एरिया, सेक्स रैकेट, काम वाली जैसे शब्द
मुझे उस उपेक्षित द्रौपदी की याद आती है
जिसने जाने कितने साँझ
अपने नाज़ुक तन पर सहे थे मेरे घायल अस्तित्व का भार,
जिसके अँधेरे कमरे में बुद्ध की छोटी-सी मूर्ति थी
वो दोहराती रहती थी :
'बुद्धम् शरणम् गच्छामि'
और मैं उसके शरण में गया था!
- रचनाकार : आसित आदित्य
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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