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बुद्ध को न्योता

buddh ko nyota

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    हम तुम्हें न्योत रहे हैं

    बुद्ध, हमारे आँगन सकोगे

    नहाकर नहीं आना

    तुम्हें कुएँ पर ले चलेंगे

    मैं बाल्टी लूँगा

    तुम कंधे पर उबहन टाँग लेना

    ख़ूब नहाना

    और एक छिट्टा मेरी आँखों पर भी मार देना

    हम तुम्हें न्योत रहे हैं

    बुद्ध, हमारे आँगन सकोगे

    अभी-अभी आँगन बुहारा है

    अभी-अभी काटी गई है, कोनों में लगी दूब

    बस अभी गोबर से लीपी गई है यहाँ की ज़मीन

    आज ही बाँधा गया है मंडप

    आज ही दरी गई है नई-नई दाल

    हम तुम्हें न्योत रहे हैं

    बुद्ध, हमारे आँगन सकोगे

    तुम्हें किसी और ने न्योता हो तो आओ

    भोजन करो हमारे साथ

    अपने जूठे हाथों से हमें खिलाओ

    वही दाल वाला हाथ माथे पर फिराकर

    हमें सदा के लिए जूठा कर दो

    हम तुम्हें न्योत रहे हैं

    बुद्ध, हमारे आँगन सकोगे

    दुपहरी में यहीं रुकना

    यहीं मंडप तले सहिताना

    नींद आए तो सो जाना

    बना देना ज़मीन पर अपने शरीर का आकार

    हम सब मिलकर बेना झलेंगे

    निहारेंगे सोते हुए बुद्ध को

    और धीरे से वहीं तुम्हारे बग़ल में सो जाएँगे

    हम तुम्हें न्योत रहे हैं

    बुद्ध, हमारे आँगन सकोगे

    जब शाम में उठना

    चाहना तो

    हमसे बतियाना

    बताना उस पौधे के बारे में

    जिसे आजकल पानी दे रहे हो

    उस गुफा के बारे में

    जहाँ रात बिता रहे हो

    उस याद के बारे में

    जिसे लुंबिनी में छोड़ आए थे

    हम बड़े ध्यान से तुम्हें सुनेंगे

    हुँकारी भरेंगे

    हम तुम्हें न्योत रहे हैं

    बुद्ध, हमारे आँगन सकोगे

    कोई काम हो तो रात रोकण करना

    नहीं मानना

    तो चले जाना

    जाना तो पता देते हुए जाना

    हमें न्योतना अपनी गुफा में

    भोजन कराना

    सुलाना

    और गप्पे लड़ाना

    लौटते समय

    हम फिर तुम्हें न्योतेंगे

    बुद्ध, हमारे आँगन सकोगे?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुभव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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