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ब्रज-वर्णन

braj warnan

गोपालशरण सिंह

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ब्रज-वर्णन

गोपालशरण सिंह

और अधिकगोपालशरण सिंह

    आते जो यहाँ है, ज-भूमि की छटा वे देख

    नेक अघाते होते मोद-मद-माते हैं।

    जिस ओर जाते उस ओर मन भाते दृश्य,

    लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।

    पल भार अपने को भूल जाते हैं वे सदा

    सुखद अतीत सुधा सिधु में समाते हैं।

    जान पडता है उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ,

    भैया भैया टेरते हैं गैया को चराते हैं॥

    करते निवास छवि धाम घनश्याम भृंग,

    उर कलियों में सदा व्रज नर नारी की

    कण कण में है यहाँ व्यात दृग सुखकारी,

    भजु मनाहारी मूर्ति चुगुल मुरारी है।

    किसको नहीं है सुध आती अनायास यहाँ,

    गोवर्धन देख कर गोवर्धन धारी की?

    न्यारी तीन लाक से है प्यारी जनभूमि यही,

    जन मन हारी वृन्दा विपिन बिहारी की॥

    भाक्त ब्रजेश की छटा है सब ठौर यहाँ,

    लता द्रुमा बल्लियों में और फूल फूल में।

    भूमि ही यहाँ की सब काल बतला सी रही,

    ग्वाल बाल सग वह लटे इस धूल में।

    कल कल रूप में है वधी रक गूँज रहा,

    जाके सुना कालत कलिइजा के कूल में।

    ग्राम ग्राम घाम घाम में है घनश्याम यहाँ,

    किंतु वे छिपे हैं मनु दुकूल में॥

    अब भी मुकुद रहते हैं ब्रज भूमि ही में,

    देखते यहाँ के दृश्य दृग फेर फेर के।

    छिपे उर कुज में है वृदावन वासिया के,

    थकते वृथा ही लगा उन्हें हेर हेर के।

    चित्त वृतियाँहै सब गोपियाँ उन्हीं की बनी,

    रहती उहीं के आस पास घेर घेर के।

    आठों थाम सब लोग लते हैं उन्हीं का नाम,

    माना हैं बुलाते ‘श्याम श्याम’ टेर टर के॥

    वही मंजू वही नहीं कलित कलिदजा है.

    ग्राम और घाम की विदीप छबि धाम है।

    वही वृंदावन है निकुंज-द्रुम-पुंज भी है,

    ललित लताएँ लाल लोचनाभिराम है।

    वही गिरिराज गोपजन का समाज वही,

    वही सब साज बाज आज भी ललाम है।

    व्रज की छटा किले आता मन में है यही,

    अब भी यहाँ ही शुभ-नाम घनश्याम है॥

    देते हैं दिखाई सब हृदय अभिराम यहाँ,

    सुषमा सभी की सुध दयाम की दिखाती है।

    फूलों फूली सुरभित रुचिर द्रुभालियों से,

    सुरभि उन्हीं की दिव्य देह की ही आती है।

    सुयश उन्हीं का शुक सरिका सुनाती सदा,

    कूक कूक कोकिला उन्हीं का गुण गाती है।

    हरी भरी दृग-सुखदाई मन भाई मंजु,

    यह व्रज-मेदिनी उन्हीं की कहलाती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवि भारती (पृष्ठ 155)
    • रचनाकार : गोपालशरण सिंह
    • प्रकाशन : साहित्य प्रेस
    • संस्करण : 1953

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